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आईना 

 

कलयुग में न कोई राम बना, न बनी अभी कोई सीता है
धर्म की रक्षा की ख़ातिर न आए अभी तक कान्हा है 
दुष्टों के नरसंहार की ख़ातिर न दिखे हैं परशुराम कहीं 
फैली दरिद्रता मिटाने को न करें है कर्ण सा दान कोई 
अधर पर लटके पशुओं की सेवा में न दिखे है कृष्ण सा ग्वाल कोई 
बंजर होती धरती की ख़ातिर न किया भागीरथ सा ताप कोई 
सच्चाई की अलख जगाने को न दिया बुद्ध सा उपदेश कोई 
क्षमा का पाठ पढ़ाने को न जन्मा यहाँ महावीर कोई 
अधर्म, लोभ, पाप, पाखंड में तृप्त दिख जाते है रावण कई 
पृथ्वी को नर्क बनाने में लगे है शकुनी और कंस कई 
कलयुग को सफल बनाने में सफल हुए है दानव कई। 

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