अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

मेरा वुजूद

 

मैं अपना वुजूद खोज रहा हूँ
ये कहाँ मिलेगा? कैसे मिलेगा? 
कोई रास्ता? कोई उपाय? कोई मंत्र? 
मुझे कोई बताएगा
कोई ऋषि, कोई दार्शनिक, कोई वैज्ञानिक, 
कोई ज्ञानी, कोई कवि, कोई लेखक 
किसी को मालूम हो तो बताओ
या कोई ऐसा हो जो सीधा 
ईश्वर से संपर्क रखता हो तो मुँह खोले
मैं बेताब हूँ जानने को कि 
आख़िर मेरा वुजूद कहाँ मिलेगा? 
बुद्ध को मिला वृक्ष के नीचे, 
उन्हें जिसने बतलाया 
उस व्यक्ति को ही कोई खोज लाओ
युशु को मिला गड़ेरियों के बीच, 
उन गड़ेरियों का ही मुझे पता बताओ
गाँधी को उनके अपमान में मिला, 
मुझे भी उस शख़्स से मिलवा कोई
अंबेडकर को किताबों ने राह दिखाई, 
उन किताबों का मुझे नाम बताओ कोई
कलाम को विज्ञान में दिखा तो 
कोई विज्ञान सिखाओ मुझे
रावण को अहंकार में, कुंभकरण को निद्रा में, 
राम को संयम में मिला
इन महापुरुषों को तो मिला ही मिला
और मिला नीरव, चोकसी, माल्या को भी
सब को मिल रहा है
बस मेरे वाले का ठिकाना नहीं
अरे कोई इसका रंग, रूप, 
आकार ही बता दो या बता दो
इस वुजूद का वज़न कितना होता है? 
ग्राम में या टन में
क्या मुझ साधारण से उठ पाएगा इसका बोझ
क्या यह मिलेगा मुझे धर्म ग्रंथों में, 
पुराणों में, वेदों में या किसी तीर्थालय, 
देवालय, हिमालय या मदिरालय में 
या किसी परचून की दुकान में? 
कहीं ऐसा तो नहीं 
किसी हवलदार ने मेरे वुजूद को क़ैद कर लिया हो? 
या किसी नारी के सम्मोह ने जकड़ लिया हो? 
हे पंच तत्वों तुम ही कुछ कहो
हे वसुधा तुम ही कुछ कहो
सब के सब मौन क्यों हैं, क्या किसी को भी मालूम नहीं
मेरा वुजूद कहाँ है? किस हाल में है? 
ज़िन्दा भी है या मेरे इंताजर में वो भी चल पड़ा यमलोक। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं