स्कूल बैग
काव्य साहित्य | कविता धीरज ‘प्रीतो’1 Apr 2024 (अंक: 250, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
मेरे कमरे के कोने में रखा
क़रीब सात साल से एक
पुराना फटा स्कूल बैग
धूल की चादर ओढ़े
चुपचाप मेरे ध्यान को बार बार
अपनी ओर आकर्षित करता है
एक संकोच जो अब तक मुझे उस
बैग से दूर किए हुए था, मिट गया
और कई प्रश्न दिमाग़ पर उभर आएँ हैं
क्या स्याही फैल गई होगी उसमें रखे प्रेम पत्रों की?
क्या अब भी महक आती होगी
उन प्रेम पत्रों से उस बेवफ़ा की?
क्या अब भी इनको यहाँ छूने से
वो वहाँ तड़प उठेगी?
क्या अब भी प्रेम पत्रों में बने दिल
सही सलामत होंगें
या आ गई होगी उनमें भी बड़ी सी एक दरार?
क्या अब भी प्रेम पत्रों के अंत में लिखा, ‘सदा तुम्हारी’
सूचक है ‘सदा तुम्हारी’ होने का?
या फिर उन प्रेम पत्रों में सिवाय ख़ालीपन और धूल
के कुछ और नहीं बचा।
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