माँगलिक
काव्य साहित्य | कविता धीरज ‘प्रीतो’15 Jan 2024 (अंक: 245, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
मैं बचपन से ही तेज़ और होशियार हूँ
हाई स्कूल और इंटर में क्रमशः
अस्सी और पचहत्तर प्रतिशत आया
सुन्दर भी हूँ और कामुक भी
बात वन नाइट स्टैंड की हो
तो सब राज़ी हैं
पर ब्याह के लिए कोई नहीं
दोष जो है मेरी कुंडली में
मैं माँगलिक हूँ
पर मुझे याद नहीं
मैंने कोई अमंगल कार्य
कब किया
एक रिश्ता हुआ था
दहेज़ माँगते थे ज़्यादा
मेरे दोष को छुपाने के लिए
पिता जी लड़के का चरण धो कर पी जाते
लेकिन मैंने रिश्ते से मना कर दिया
मेरी उमर निकली जा रही है
माँ बाप को चिंता है
और उनका रवैया भी बदल रहा
मेरे प्रति, जैसे दोष मेरा हो
एक और लड़का देख आए हैं
शायद वो भी माँगलिक है
मुझे ख़ुशी हुई
मैं अकेली नहीं माँगलिक
पर लड़के में दोष कम है
मुझ में ज़्यादा
मुझे शादी करनी होगी पहले
एक पीपल के पेड़ से
फिर मैं क़ाबिल बनूँगी
एक लड़के से ब्याहने के लिए
सोचती हूँ हिम्मत करके
पिताजी को बता दूँ
एक लड़का है
जिसे मेरी कुंडली के दोष नहीं
मेरी ख़ूबियाँ दिखाई देती हैं
प्यार करता है, शादी भी करेगा
मज़ाक़ में कहता है मुझ से
माँगलिक लड़कियाँ पसंद हैं उसे।
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