गिद्ध
काव्य साहित्य | कविता धीरज ‘प्रीतो’1 Mar 2024 (अंक: 248, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
प्रकृति का रोना स्मरणीय नहीं है
फिर भी
प्रकृति के रोने से सब डरते हैं
क्यों? क्यूँकि यह क्षणिक तबाही करता है
प्रेमियों का रोना स्मरणीय है
फिर भी
प्रेमियों के रोने से कोई नहीं डरता
क्यों? क्यूँकि प्रेमी किसी को हानि नहीं पहुँचता
प्रेमी क्रूर होकर ज़्यादा से ज़्यादा ख़ुद को हानि पहुँचाता है
कभी फाँसी लगाता है, कभी ज़हर खाता है
और बन जाता है निवाला गिद्धों का
सब कहते है गिद्ध विलुप्त हो गए हैं
पर यहाँ कितने सारे हैं
शायद सवा सौ करोड़ में एक कम
एक कम इसलिए क्यूँकि वही एक प्रेमी है
बाक़ी सब गिद्ध
सब नोंच खाना चाहते है उस एक की आँख
उस एक की आँख इन सभी गिद्धों के लिए पर्याप्त है
जिन गिद्धों से आँख छूट गई वे भेष बदल मच्छर हो जाएँगे
और ख़ून चूसेंगे उस एक के सर पर भिनभिनाते हुए
अहो भाग्य! अहो भाग्य! उस एक का जो इन गिद्धों की
क्षुधा को तृप्ति दे रहा है
इस बार सावन में बरसात होगी
पानी नहीं गिरेगा, आँसू गिरेगा
आँसू उस एक का जो अपने मौत पर रो नहीं पाया
अब रोएगा आसमान की गोद में बैठा
अब उस एक का रोना प्रकृति का रोना होगा
अब उस एक की रुलाई सब गिद्धों को जीवन देगी।
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अरुण कुमार प्रसाद 2024/03/01 12:53 PM
बहुत अच्छी है।