जागती वेश्याएँ
काव्य साहित्य | कविता धीरज ‘प्रीतो’15 Jan 2024 (अंक: 245, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
इस दुनियाँ में सब सोते हैं
नहीं सोती है तो वेश्याएँ
ये उस वक़्त भी जागी
जब लॉकडॉउन में पूरी
दुनिया सो रही थी
कई मर्द आते हैं इनके पास
सोने के लिए
ये जागती हैं रात और दिन लगातार
इनके यहाँ सूरज नहीं डूबता
इनके सूरज का नाम है रेडलाइट
जो सदैव रौशन रहता है
हर वक़्त इनके छाती पर
कोई बैठा होता है
तब भी जब ये अपने बच्चों को
दूध पिला रही होती हैं
ये हमेशा सजी रहती हैं, जगी रहती हैं,
थकी रहती हैं
इनके काम को तुम धंधा मत कहो
ये तो सदैव पूजा में रहती हैं
अगर इस धरती के बाद भी
कहीं स्वर्ग है तो
यक़ीनन ये वेश्याएँ ही
उस स्वर्ग की हक़दार हैं।
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