अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

मैं भी इंसान हूँ

 

एक
 
इस धरा की जननी ने
कीड़े मकोड़े बनाए, पक्षी बनाए, 
जानवर बनाए, बनाए लाखों जीव
फिर प्रकृति से भूल हुई
भारी भूल हुई
एक औरत बनाई एक पुरुष बनाया
फिर जो कुछ भी बनाया था
दोनों ने मिलकर सबको धूल बनाया
जनसंख्या बढ़ाई देश बनाया
धर्म बनाए, मज़हब बनाए
जात बनाई, उपजात बनाई
आपस में बँटते चले गए
अपनों से लड़ते चले गए
 
दो
 
कुत्ता अब भी कुत्ता
घोड़ा अब भी घोड़ा
इस दुनिया के सारे जीव पहले जैसे हैं
फिर ये इंसान कहाँ खो गया
क्या इनकी अपनी बुद्धि ही श्राप बनी है
हथियार बनाए, बम बनाए
प्रथम, द्वितीय विश्वयुद्ध किया
हिरोशिमा को नपुंसक किया
न धरती छोड़ी, न आकाश छोड़ा
जहाँ देखो वहीं है कचरा किया
पर्वतों, पहाड़ों को कुचल दिया, कुचल रहा है, 
जब तक रहेगा कुचलता रहेगा
सागरों, नदियों, झीलों में पेट्रोल छोड़ा, 
रसायन छोड़ा, मलमूत्र छोड़ रहा है
अंत, ये अंत क्यों नहीं आता
कब आयेगा अंत? 
 
तीन 
 
प्रेम, काम, क्रोध, डर, अनुशासन, स्पर्धा, 
जैसे लक्षणों के वश में आकर
पुरुषों में अपने लिए अलग काम
और महिलाओं के लिए चूल्हा चौका
बरतन, झाड़ू पोंछा बनाया
अनाज उगाया, सिक्के बनाए, व्यापार बनाया
इतिहास में लाखों करोड़ो लाशों, मांस के लोथड़ों
को रौंदते हुए, 
वेश्याओं के नंगे बदन को चाटते, खाते
और काटते हुए अपना साम्राज्य बनाया
फिर स्त्रियाँ उठ खड़ी हुईं और
इतने शोर के साथ की उनकी 
आवाज़ के सामने सारी ध्वनियाँ शून्य हो गईं
पुरुषों को अपने अंगुलियों पर नचाना शुरू किया
पुरुष काममुग्ध हो हाँ में हाँ कहता चला
इतिहास के पन्ने पटते चले गए 
ऐसी ही वीभत्स कहानियों से 
स्त्री और पुरुष, पुरुष और स्त्री
देखो देखो सुनो सुनो
कौन किसको काट रहा है
कौन किसको मार रहा है
वीभत्स वीभत्स, डरावना डरावना
 
चार
 
कौन कहे भगवान बनाया हमको
या हमने भगवान को बनाया है
स्पर्धा है, घोर स्पर्धा
इंसानों इंसानों के बीच
भगवान भगवान के बीच
इंसान भगवान के बीच
होड़ है महान बनने की, 
क़ाबू पाने की, ख़ुद पर नहीं औरों पर
पाखंड करके, पूजापाठ करके
सब को वश में कर लो
बताओ इनको, डराओ इनको
हमारा ईश्वर महान है, 
नहीं नहीं हमारा ईश्वर महान है, 
अरे नहीं इनका ईश्वर चोर है
हमारा ख़ुदा महान है
क्या बकवास है यीशु महान है
कहो इनसे नर्क में जलेंगे
जन्मों-जन्म तक भटकेंगे
आओ धर्मांतरण करो, 
आओ, आओ, आओ . . .। 
 
पाँच
 
एक और ग़लती हुई प्रकृति से
इंसानों में भूख बनाई, उदर बनाया
सब खा रहा है, खाता ही जा रहा है
मांस, मदिरा, ड्रग्स, अपना खाना, जानवरों का खाना, 
रिश्ते नाते, अपने पराए, धरती, आकाश, पाताल
ग्रह, नक्षत्र, सब, सब, सब . . .
जो दिखता है वो भी
जो नहीं दिखता है वो भी
खा रहा है, सब खा रहा है
कितना खाता है, खाता ही जा रहा है
इसका उदर है या ब्लैक होल
इनकी क्षुधा है कि शांत नहीं होती
तृप्ति नहीं मिलती इनकी क्षुधा को
जो समा गया इनके उदर में लौटा नहीं
बचो, बचो, बचो इनसे, ये इंसान है
मुझसे भी बचो
भाग जाओ, दूर भाग जाओ मुझसे
मैं अंत हूँ इस पृथ्वी का, क्यूँकि
मैं भी इंसान हूँ। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं