पुतली
काव्य साहित्य | कविता धीरज ‘प्रीतो’1 Feb 2024 (अंक: 246, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
कुछ बातें जग ज़ाहिर होती हैं
जैसे मुझे तुम से अब भी प्रेम है
तो वही कुछ बातें दफ़्न कर दी जाती हैं
पुतलियों के पीछे राज़ बनाकर
संसार में ऐसी कोई आँख नहीं
जिसकी पुतलियों के पीछे क़ब्रिस्तान नहीं
मैं इन्हींं पुतुलियोँ को स्वर्ग
और क़ब्रिस्तान को नर्क कहता हूँ
जब हम दोनों साथ थे, स्वर्ग में भ्रमण करते थे
अब जब अकेला हूँ क़ब्रिस्तान में बैठा आँसुओं के
महल बनाया करता हूँ
और सिर्फ़ इतना ही नहीं
इन्हीं महलों में बैठ कर, अक़्सर
हम तेरी यादों के परिंदे उड़ाते हैं।
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