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मनःस्थिति

 

तुम्हें प्रेमी चाहिए? 
मुझ में प्रेमियों जैसी कोई बात नहीं! 
 
प्यार भरी आँखों की ज्यामितीय
मुझे भयभीत करती है, 
मैं सहम जाता हूँ छुवन से
मुझे एकांत पसंद है और
एकांत में शब्द और शब्दों में कविताएँ
 
मैं हूँ ज़रूर बाहर से हाड़-माँस का, किन्तु, 
अंदर से बिल्कुल शून्य
 
कभी कभी विचारों के कुछ छींटे उठते हैं
और क्षण भर में वाष्पित हो जाते हैं
शेष बचते हैं शब्द और शब्दों में पिरोई एक कविता
 
यक़ीं मानो, तुम पर कविताएँ लिखने का सुख 
तुम से प्रेम करने के सुख से ज़्यादा बड़ा है 
 
अगर है प्रेम तुम्हें कविताओं से, कभी कभी
आना मेरे पास और बैठना चुपचाप
 
और अगर तुम्हें प्रेमी चाहिए
तो जाना मेरे मित्रों के पास
जिन्हें समझ में आती है
गानों की लिरिक्स, 
जिनमें प्रेमियों वाली पूरी पूरी बात है। 

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