सूरज डूब गया है
काव्य साहित्य | कविता धीरज ‘प्रीतो’1 Jan 2024 (अंक: 244, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
एक
गोधूलि का वक़्त है
सूरज डूब रहा है
कहीं सागर में, कहीं नदियों में
कहीं किसी तालाब में,
कहीं किसी लैला की छत पर
कहीं किसी मजनूँ की झोपड़ी पर
सब अपने अपने घरौंदे को जा रहे हैं
पक्षी, मवेशी और मज़दूर
मुझे छोड़ कर सब जा रहे हैं
मेरी परछाईं भी
मैं उदास बैठा हूँ तुम्हारे इंतज़ार में
तुम कह गई थी
थोड़ी देर में आती हूँ
तुम आओगी?
मैं अब भी बैठा हूँ
दो
कहीं दूर
किसी दूसरे बिंदु पर
किसी के इंतज़ार में
कोई और बैठा है
एक बच्चा
जिसकी माँ उसे पालना
नहीं चाहती, छोड़ गई
कह कर थोड़ी देर में आती हूँ
सूरज डूब गया है
बच्चा बैठा है इंतज़ार में
माँ आएगी?
तीन
कहीं दूर
तीसरी बिंदु पर
कोई बीमार बैठा है
लार टपक रही है
एक कुत्ता है
अपने मालिक के इंतज़ार में
मालिक कह गया है
थोड़ी देर में आता हूँ
बिस्किट लेकर
सूरज डूब गया है
कुत्ता अब भी बैठा है
सोचते हुए
मालिक आएँगे?
चार
अब हम तीन हैं
त्रिभुज के तीन
बिंदुओं पर बैठे
इंतज़ार में
प्रेमिका,
माँ और
मालिक के
सूरज डूब गया है
प्रश्न वही है
क्या ये लोग आएँगे?
पाँच
एक प्रश्न और है
कि आख़िर क्यों इंसानों का प्यार
सूरज, चाँद और धरती के प्यार जैसा
नहीं है
सूरज को चाँद से प्यार है
चाँद को धरती से और
धरती को सूरज से
इन तीनों को एक दूसरे के प्यार से
जलन नहीं है उलट एक दूसरे के
प्यार से भी प्यार है
ये एक दूसरे का ख़्याल रखते हैं
अब हम भी तीन हैं
तीनों में से किसी को सूरज हो जाना है,
किसी को चाँद और किसी को धरती
और रखना है अब एक दूसरे का ख़्याल।
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