गर्मी देवता की गर्मी
काव्य साहित्य | कविता धीरज ‘प्रीतो’15 Oct 2024 (अंक: 263, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
पृथ्वी की उत्पत्ति आग से हुई थी
यह याद दिलाने गर्मी देवता आ गए हैं
प्रचण्ड क्रोध और भिसड़ गर्मी के साथ
इन्होंने सूर्य देवता की सेना को भी उधार माँगा है
पवन देवता को भी गर्म रहने को कहा है
अमेज़न, कोलंबिया, यूराल और हिमालय के जंगलों को
सख़्त आदेश दिया गया है अपने पेड़ों किआग बुझाने ना देना
प्रमुख ज्वालामुखियों के लिए
ख़ास नियम बनाया गया है शोले बरसाएँ
पृथ्वी की नाभि भी अपनी भूमिका में है
समस्त जलकुण्डों को सोख रही है
गरजता चालीसा, प्रचंड पचास और चीखता साठा के
पछुवा पवनों में भी आग के गोले भर दिए गए हैं
दक्षिण पश्चिम मानसून से उ
सके समस्त जलकणों को
कन्याकुमारी के दरवाज़े पर ही छान लिया गया है
हिमालय के हिम को भी पिघलाने की ज़िम्मेदारी
जेट हवाओं ने सँभाल ली है
गर्मी देवता के छोटे-मोटे सैनिक जिन्हें
प्रायः एयर कंडीशनर से निकलने वाली
गर्म हवाओं का दर्जा प्राप्त है, ने मोर्चा सँभाल लिया है
गर्मी देवता आक्रमण का आदेश दे चुके हैं
आठों दिशाओं में बिगुल बजा दिया है
त्राहिमाम त्राहिमाम त्राहिमाम
इंसान हाहाकार कर रहे हैं
कृत्रिम वर्षा का जुगाड़ कर रहे हैं
कूलर में पानी भर रहे हैं
चार पहर नहा रहे हैं
अफ़सोस! गर्मी देवता से कोई जीत ना सकेगा
ये पृथ्वी पुनः आग का गोला बन के रहेगा।
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