अदृश्य दरवाज़े
काव्य साहित्य | कविता धीरज ‘प्रीतो’15 Mar 2024 (अंक: 249, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
इंसानों ने अपने चारों तरफ़
दरवाज़े बना लिए हैं
इन दरवाज़ों से समाज की बुराइयाँ
निकल नहीं पाती
और स्वर्ग से आने वाली अच्छाइयाँ
समाज में आ नहीं पातीं
हमारे समाज के जितने दरवाज़े हैं
फ़िलहाल सभी बंद हैं
कुछ खुले हैं पर ओठनाए हुए हैं
कभी कभी इन्हीं दरवाज़ों से कुछ
बुराइयाँ बाहर जाती हैं और कुछ अच्छाइयाँ
अंदर आती हैं तो कोई बुद्ध बन जाता है
तो कोई महावीर तो कोई गाँधी।
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