होली—याद है तुम्हें
काव्य साहित्य | कविता धीरज ‘प्रीतो’1 Jan 2024 (अंक: 244, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
वो होली का दिन याद है तुम्हें
वो पहला रंग याद है जो मैंने
तुम्हें बग़ैर छूए अपनी आँखों से
तुम पर डाला था जिसमें तुम्हारा
संपूर्ण बदन भीग कर निखर गया था
जैसे बारिश से भीग पौधे निखर जाते हैं
फिर एक गाल पर पीतांबर और
दूसरे गाल पर हरा रंग लगाया
और तुम्हारे ललाट को लाल रंग से
सराबोर करते हुए मेरे हाथ तुम्हारे होंठों के
रास्ते तुम्हारे गर्दन पर पहुँचते ही तुमने
उन्हें रोक लिया, बोला कोई देख लेगा
और मुझ पर रंग और एक मीठी मुस्कान
फेंकती हुई हिरनी चाल से
अपने कमरे में भाग गई।
फिर तुमने सब को बताया तुम्हारी तबीयत
ख़राब है ताकि कोई और तुम्हें रंग ना
लगा सके, बढ़िया तरकीब थी मेरे रंग को
अपने चेहरे पर बचा लेने का
तुम मुझसे नाराज़ थी कि मैं उसके बाद
भी होली खेलता रहा और तुम्हारे रंग को
बचा न सका अपने चेहरे पर
तुमने हफ़्ते भर मुझसे बात नहीं की थी
और तुम्हारे ज़िद से हमने खेली थी होली
छुपा कर होली के एक हफ़्ते बाद, जिसके बाद मैं
लोगों के उस सवाल से बचता रहा कि
होली के इतने दिनों बाद
कौन मुझे लाल रंग लगा गया है
तुम्हारे बाद भी मैंने सँजो कर रखा है
होली की उस मीठी याद को और बचा
लेता हूँ अपने चेहरे का लाल रंग तुम्हारी याद में।
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