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प्रेम का रंग

 

कुछ धुँधला सा याद है मुझे
एक बार तुम कह रही थी
प्यार-व्यार सब बेईमानी है, धोखा है
यह निठल्लों का काम है
इसमे सिर्फ़ दुख है, नितांत दुःख
आश्चर्य है, प्रेम पर ऐसा आख्यान मेरे लिए
वो भी उस युवती से जिससे मैं प्रेम करता हूँ
 
अब प्रश्न है तुम्हें कैसे यक़ीन दिलाऊँ मैं
वो एक अद्भुत रंग जो प्रेम के देवता कृष्ण को प्राप्त हुआ
जिसकी कुछ बूँदें छिटक कर तुम्हारी देह को भी छू गई हैं
तब से, हाँ तब से तुम राधा हो और मैं तुम्हारा कृष्ण
मुझे प्रेम फल का कोई लोभ नहीं है
न मोह है सदा रहूँ तुम्हारे समक्ष
बस एक उम्मीद है
जब बवंडर उठे तुम्हारी आँखों में
तब जब मैं थामूँ हाथ तुम्हारा
मेरा हाथ थामना बहुत कुछ तुम्हारी आत्मा थामने जैसा लगे। 

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