स्पर्श
काव्य साहित्य | कविता धीरज ‘प्रीतो’1 Aug 2024 (अंक: 258, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
तुम्हारे प्यार करने के नए नए तरीक़ों से
कभी कभी मैं ऊब जाती हूँ और
कभी कभी जान पड़ता है,
प्यार करना पहेली बूझने जैसा है जो मुझे कभी न आया
मैं जब भी तुम्हारे क़रीब रही
तुम्हारी अंगुलियाँ मेरे वक्ष-स्थल को जकड़े रहीं
कभी कभी तुम्हारी यह हरकत मुझे ग़ैर ज़रूरी लगी
किन्तु, मैं जब भी तुम से दूर रही
ऐसा लगा जैसे मैं अपना कोई अंग बिसरा आई हूँ
मेरी देह जो कठोर अस्थियों से बनी है
तुम्हारे देह के स्पर्श मात्र से
पिघल कर आकारहीन हो जाती है
और जहाँ तक मुझे याद है
तुम्हारे स्पर्श के बाद मैं
अनंत आकाशगंगा में भ्रमण करती हूँ।
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