गड़ा मुर्दा
काव्य साहित्य | कविता धीरज ‘प्रीतो’15 Jan 2024 (अंक: 245, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
कहीं कोई
गड़ा मुर्दा मिल जाए
उसे उठा कर पूछूँगा
मौत के बाद क्या होता
स्वर्ग नर्क होता है
पुनर्जन्म होता है
भगवान होते है
या फिर होता है सिर्फ़
भ्रम, छल, कपट और झूठ
क्या मुर्दे हँसते हैं या रोते हैं
क्या इन्हें दर्द होता है
खाते क्या हैं ये लोग
चढ़ावा?
क्या नींद आती है
क्या आलस, थकान होती है
क्या सर दर्द करता है
सुन कर जीवित इंसानों की
बेतुकी बातों को
या होता है मुर्दा भी मुर्दा और
होता है सिर्फ़ खाना
सूक्ष्मजीवों का
जैसे जीवित इंसान का है खाना
काम, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या
पाखंड और क्रूरता का।
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