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दूध और पानी की मैत्री (अधबीच)

दूध और पानी आपस में गहरे मित्र है। ग्वालों के घर पैदा हुआ हूँ इसलिए गायों की प्रकृति को समझता हूँ, वहीं गाय जो हमें अमृत रूपी दूध देती है उस दूध और पानी की मित्रता तथा आपसी प्रेम को लेकर अनेक बार नानी जी उनकी प्रेम कहानी बताती रही है। नानी कहा करती थी कि मित्रता का धर्म प्रेम है और प्रेम जिस से किया जाए उसके लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर मित्र को आँच न आए तो सही मायने में तुमने मित्रता निभाने का धर्म पालन किया है। वे दूध और पानी की मित्रता पर कहती कि ये दोनों सच्चे प्रेमी हैं और मित्रता निभाने के लिए दूध को बचाने हमेशा पानी अपने को न्योछावर कर देता है। आज जिस तरह मित्रता में धोखे दिए जाते हैं, ऐसे शठ मक्कार लोगों से भगवान किसी की मित्रता न कराए।

दूध और पानी दोनों ही बड़े गहरे मित्र हैं जो एक दूसरे के हित के लिए मिटने को तैयार हैं। दूध में जैसे ही निर्मल जल मिल जाता है तो दूध अपनी मित्रता गाँठकर तत्‍काल उस जल को अपने में समेट कर उसे उज्जवल दूध के रूप में मान्‍यता दे देता है। यानी, पानी जैसे ही दूध से मिलता है तो वह पानी नहीं रह जाता है; दूध हो जाता है, दूध होने पर पानी का मान सम्मान दूध के बराबर हो जाता है। नानी चूल्हे पर दूध से भरा तसला रखती और दूध में पानी मिलाती, पर जैसे ही आग की धधक तसले पर लगती तो दूध और पानी दोनों अग्नि में जल उठते और छन-छन की आवाज़ आने पर नानी जी बताती कि दूध को बचाने के लिए पानी जल कर ख़ुद को क़ुर्बान कर रहा है। यानी दो मित्र दूध और पानी में से, पानी जल रहा है और दूध को बचा रहा है। बचपन में नानी हो या दादी बच्‍चों को जीवन के हर प्रसंग में संदेश देकर उन्हें जीने के लिए संस्कारित करतीं यह बात इस प्रसंग में स्पष्ट महसूस हुई।

विचारणीय है कि दूध और पानी के बीच चलने वाले संवाद को अगर आप अपनी गहन संवेदनाओं से प्राप्‍त करने का प्रयास करेंगे तो आपको लगेगा कि जैसे ही आग के तादात्म्य में दूध आता है तो वह अपने मित्र पानी को आग में जलते देख रो पड़ता है और पानी कहता है कि मेरी एक बूँद भी पानी की दूध में है तब तक मैं जलकर अपने को मिटा दूँगा पर तुम पर आँच नहीं आने दूँगा। दूध और पानी जैसे मित्रों में दूध का अपने मित्र पानी के प्रति विरह और व्याकुलता देखने की दृष्टि हो तो आप व्यथित हो जाएँगे। पानी उबलकर वाष्प बनकर उड़ने लगता है और भाव विह्वल दूध अपनी मित्रता पर आए इस संकट पर लाचार बना रहता है, अग्नि में जलते हुए भी दोनों शांत होते हैं। उनकी इस शान्ति में दूध और पानी के बीच उठ रही वाष्‍प और धुँए के हल्के से अंधकार में एक भूचाल-सा आता है और दूध अपने मित्र पानी के जलने की, उससे बिछोह होने की पीड़ा सह नहीं सकता और उबाल के रूप में वह बरतन की सीमाओं को लाँघकर ख़ुद को भी धरती में मिलाने को आतुर हो जाता है, किन्तु ऐसे समय में जब दूध में विरह का उबाल आए तब दूध की पीड़ा को शांत करने के लिए पानी के ही छींटे काम आते हैं जो उबलते दूध को शांत कराते हैं!

दूध और पानी की मैत्री में दोनों आलिंगनबद्ध हो एक प्राण हो जाते हैं, दूध की आत्मा में पानी समा जाता है, दूध पानी से मिलकर अपने आकार व स्वरूप का विस्तार कर लेता है। पानी पर दूध का रंग छा जाता है और प्रेम मिलन में पानी मिट जाता है, दूध रह जाता है। दूध को अग्नि में दग्‍ध करते समय पानी के छन-छनकर जलने के विरह में पानी के अंत के विछोह को दूध गहन पीड़ा से सहन कर अपने उत्‍कृष्‍ट प्रेम और उच्चतम आदर्श को स्थापित करता है। दूध और पानी की मित्रता इस जगत के लिए एक गहरी शिक्षा है कि मित्रता के निर्वहन में अगर स्वयं मिट कर मित्र को बचा सके तो निःसंदेह ऐसे मित्र इतिहास में यश और महान कीर्ति पाकर अपना जीवन धन्य कर अपनी पीढ़ियों को गौरवान्वित करते हैं।

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