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शहर का प्रमुख नाला जब नालियों से मिला

 

एसडीएम ने सीएमओ को लताड़ा कि शहर में कही भी नालों की सफ़ाई नहीं हुई। दो घंटे की बारिश ने शहर को तहस-नहस कर दिया। यानी अधिकारियों से स्वीकार कर लिया सीएमओ और नपा अपनी जेसीबी मशीन और पूरे अमले को लेकर नालों कि सफ़ाई करने कि बजाय घूमते रहे और परिणामस्वरूप नाले इतने ख़तरनाक हो गए कि दो घंटे कि बरसात से शहर में तबाही ला दी। मेरे एक पत्रकार मित्र शेखपप्पू बजरिया में रहते हैं। वे हमेशा नालों कि सफ़ाई न होने कि बात करते, पर नपा अध्यक्ष से लेकर सारे अधिकारी उन्हें लॉलीपॉप थमा देते। परिणाम स्वरूप उनके घर में नाले का पानी घुसना तय माना जाता और तय माने अनुसार उनके घर में पानी होता। नर्मदापुरम बजरिया इतवारा का इकलौता मुख्य नाला जब दो घंटे की मूसलाधार बारिश के पानी को अपने में समेटे अपने आसपास की नालियों से मिला तो नालियाँ तो झूम उठीं। वे नाले से गले मिलते ही पागल हो गईं। इन नालियों की पगलाहट इनके मस्तिष्क पर सवार हो गई। बस वे नाले के गले लगाए जाने पर इतनी ख़ुश थीं कि अपने को सँभाल नहीं पा रहीं थीं और अपनी ख़ुशी वे पूरे नगरजनों को बाँटने को उतावली हो गईं। वे नाले का प्यार लिए पूरे शबाब पर आ गईं और देखते ही देखते सारी नालियाँ अपने प्रियतम नाले में इस प्रकार समाईं कि सारा शहर जलमग्न हो गया। नालियों को उथले इकलौते नाले का ज़रा-सा प्यार मिला और वे इठलाती बलखाती सड़कों पर उछलने लगीं। पलक झपकते ही पूरे शहर की नालियाँ नाले के प्रेम में इस प्रकार एकजुट हुईं कि शहर की प्रमुख सड़कें, महल्लों की गलियाँ, बजरिया महल्ले से इतवारा बाज़ार, बालगंज, रेवागंज, सब्ज़ी मंडी, दशहरा मैदान आदि स्थानों पर नाले से लिया प्रेम जल से सब कुछ पानी-पानी कर दिया। सड़कों पर घुटना-घुटना पानी, घरों में कमर-कमर पानी की सौग़ात। यह नाला निकम्मी नगरपालिका की मेहरबानी से, कई घरों में नालियों की मदद से, किसी विदेशी आक्रमणकारी के तरह जा घुसा और उनके घर के पहनने-ओढ़ने के कपड़ों सहित खाने-पीने के सामान और अनाज को देखते ही देखते बर्बाद कर, बरसात का जश्न माना रहा था। यह नाला मेरे शहर का है, हो सकता है यही सेम टू सेम आपके शहर की भी दास्तां हो। 

शहर का यह नाला कोई मामूली नाला नहीं है, जब भी पहले यह पूरे शहर और बरसात का पानी लेकर निकलता था तब चार-पाँच वार्डों की सभी नालियाँ इसमें समा जाती थीं तब यह कभी बेलगाम नहीं दिखा; उस नाले का पानी सड़कों पर नहीं आया। नालियाँ पूरा ज़ोर लगाकर जितना पानी लातीं, वह भी नालियों से बाहर निकल नहीं पाता था, पर अब क्या कारण है कि नाला ज़रा-सा मुस्कुरा दे तो नलियाँ अपनी सीमाएँ तोड़कर शहर को डुबाने का साहस रख इठलाती हैं और पूरा प्रशासन हाथ मलता, बरसात के पानी को ले जाते नाले और नालियों के पानी में डूबने वाले मकानों को बाढ़ पीड़ित मानकर, उनका सर्वे करने निकल पड़ता है। मीडिया के चैनल और अख़बार बरसात के पानी में भीगते ज़िले के उच्च अधिकारियों, तहसीलदार, एसडीएम, एडीएम, डी एम की कवरेज में उन आम और सामान्य व्यक्ति के दर्द और पीड़ा को भूल जाते हैं जिनके घरों में बाढ़ के आने की हिम्मत हुई। उनके घरों में, नाले और नलियाँ साफ़-सफ़ाई के अभाव में, घुसकर कमर-कमर पानी का सैलाब ला देते हैं। 

बजरिया के इस नाले का एहसान पुलिस कप्तान भी मानते थे, तब भी यह नाला अपनी हद में था और आज भी अपनी हद में है। बात वर्ष 2001 की बरसात की है तब इस गहरे नाले के ऊपर कभी बरसात का पानी नहीं आता था। तब एक मूसलाधार बारिश की रात, चट्टन मियाँ ने अपनी मोटरसाइकिल बजरिया महल्ले से डॉ. पांडे वाले मार्ग के लिए जाने के लिए निकाली कि कब मोटर साइकिल सहित नाले में समा गए किसी को पता नहीं चला। चट्टन मियाँ उस समय एक हिस्ट्रीशीटर बदमाशों में शुमार थे जिससे पुलिस परेशान थी। उसके लिए कोई अपराध करना आम बात थी। एक बड़े अपराधी का अंत इस नाले में इस प्रकार हो जाएगा पुलिस को यक़ीन नहीं था, पर जब बरसात थमी और नाले का पानी कम हुआ तब यह रहस्य उजागर हुआ और पुलिस ने राहत की साँस ली। आज इस नाले के चारों और प्रभावशाली लोगों का अतिक्रमण है। नाले की सफ़ाई में नपा के प्रयास असफल हुए। परिणामस्वरूप यह नाला अपने मूलरूप में नहीं रहा। अलबत्ता उसमें बरसात का पानी आते ही यह ख़ुद अपनी सीमाएँ लाँघने लगा है। इस शहर के अन्य नाले अपने मूलरूप से नालियों में तब्दील होने से अपनी क्षमता खो चुके हैं। शहर के अधिकांश नाले अतिक्रमण कर लिए गए, मीनाक्षी चौक पर पुलिया के ऊपर मेडिकल दुकान को जैसे कलेक्टर हटाने की ताक़त नहीं रखते वैसे है हर अतिक्रमणकर्ता प्रभावशाली है और उनपर विधायक का हाथ है। 

नालों पर क़ब्ज़े के बाद भी नाले आख़िर नाले हैं और वे अपना काम पूरी ईमानदारी से कर रहे हैं भले नालियों से मिलने पर गली-मोहल्लों को डुबोना पड़े, वे डुबो रहे हैं। असल में देखा जाये तो नालों के लिये जो नासूर हैं और जो नालों को नाले नहीं रहने देना चाहते हैं, वे ही इस शहर की मूल बीमारी हैं, जिसे सभी दवा समझते हैं। पूरे शहर के नालों को नाली बनाने वाले, नालों पर क़ब्ज़ा कर भवन, दुकान और माल बनाने वाले, सफ़ेद, स्याह, खाकी के लिबास में घूम रहे हैं। वे देख रहे हैं अपने कुर्ते बंडी की क्रीज़। वे चाहते है कि उनकी क्रीज़ कम न हो और जनता में उनका क्रेज़ बना रहे। पर बरसात में नालों पर अतिक्रमण के रहते जिनके घरों में पानी घुसता है, जो कई रातों को सोते नहीं है, घरों में कमर तक पानी, बिजली की जगह स्याह घुप्प अँधेरा . . . अँधेरे में रेंगते-तैरते पानी के जीव, साँप आदि देख जो पल-पल मरते हैं। मूसलाधार बारिश में भीगते यह सब सहते लोग, उन नालों की शक्ल में देखते हैं अपने जनप्रतिनिधि को, अपने प्यारे नेता को, अपने संसद विधायक और पार्षद को . . . नालों-नालियों के पानी से घिरे इन लोगों को अपने ये नेता किसी गंदे नाले या नाली से कम दिखाई नहीं देते हैं, जिसमें मर-खप चुके कई निर्दोषों की आत्माएँ इन नालों में छटपटा रही होती हैं। 

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