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वह जब ईश्वर से रूठ जाती है

 

वह घर के कोने में बैठी
ख़ुद से बातें करती रहती है। 
आँखों में अश्रु धार लिये
ख़ुद अनजानी पीड़ा सहती है। 
सास-श्वसुर और ननद-नंदोई
इनसे उदासी रख बनी निर्मोही। 
देवर-देवरानी और जेठ-जेठानी
बेरुख़ी इनकी उसने ज़िद ठानी। 
तन्हाई में जीना, ख़ुद आँसू पीना
आँखें मीचे, ख़ुद से बातें करना। 
बातें पुरानी, घर की कहानी
उसको सताती हैं, ख़ूब रुलाती हैं। 
प्यासी रही बरखा, बीते कई सावन
जियरा उदास रहा, मिले न मनभावन। 
मन में धड़कती, मिलने की आस
पगली ये कहती, पिया आओ न पास। 
ख़ुश रहे सदा वह, इसी ख़्याल में जीना
अपनी उदासी छिपाकर, अपने आँसू पीना। 
इस जीवन में खिलखिलाकर, कभी हँसी हो, 
गुज़रे ज़माने की या, बात उस सदी की हो। 
वह ख़ुद इन बातों को मन ही मन दोहराती है
पडिहार कहते देवी माँ की छाया है तन, मन पर
आने न दूँगी किसी देवी को, वह बुदबुदाती है। 
अभी ज़िन्दा हूँ ख़ुद मन को बताना
अभी मरी नहीं हूँ यह जतलाना
ख़ुद से कहना, घर को जाती हूँ मैं
ख़ुद से कहना, घर को आती हूँ मैं
ख़ुद से कहना, खाना खा लिया क्या
ख़ुद ही कहना, अभी कहाँ, खाती हूँ मैं। 
जब भी घर में अकेली होती है, 
वह सभी काम कर रोती है
बर्तन-कपड़े साफ़ करना
खाना पकाना और खिलाना
एक मशीन वह बन जाती है
तक़दीर उस की दवा बनी, 
दवा छोड़ वह ख़ुद पछताती है। 
बेटा-बेटी के घर में होने पर भी
वह तन्हाई में ख़ुद को ले जाती है
दिन बदले, मौसम बदले और‘
‘पीव’ बीत गए जीवन के कई साल
ख़ुश मन रखना चाहे सभी पर
उदासी में रहता उसका बुरा हाल। 
ईश्वर भक्ति में शक्ति नहीं है
भक्ति में डूबी, ख़ुद बड़बड़ाती है
ईश्वर को स्नान कराना, वस्त्र पहनाना
नित पूजा कर मन से भोग लगाना, 
उसे यह बात अब क़तई नहीं सुहाती है
जब दुनिया से वह टूट जाती है
वह जब ईश्वर से रूठ जाती है। 

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