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राम की अदालत में कुत्ते की फ़रियाद

 

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के साम्राज्य में कोई भी व्यक्ति, प्राणी, जीव आदि को कोई बीमारी नहीं रही और सबके प्रति श्रीराम के सौम्यतापूर्ण व्यवहार के कारण प्रजा समस्याग्रस्त नहीं थी। उनके राज्य में पृथ्वी अन्न और औषधियों से सम्पन्न थी। उनका राज्य धर्म द्वारा शासित होने से किसी बालक, युवा, बूढ़े को कोई कष्ट न था। अयोध्या के राजा बनते ही श्रीराम प्रतिदिन प्रातःकाल पूजा पाठ और माताओं-गुरु को नमन कर अयोध्या की प्रजा के सभी तरह के मामलों की सुनवाई के लिए अदालत लगाते थे। उनकी अदालत में वेदशास्त्र ज्ञाता उनके गुरु वशिष्ठ जी और कश्यप ऋषि की जूरी साथ सुनवाई करते और राम गुणदोषों के अनुसार साक्ष्य की कसौटी को संज्ञान में रखकर प्रकरणों में न्याय करते। श्रीराम की अदालत में धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र के सर्वज्ञाता विराजते और उनकी अदालत इन्द्र, यम और वरुण की न्यायसभा जैसी ही सुशोभित थी जिसका उल्लेख महर्षि वाल्मीकि रचित श्रीमद वाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड के प्रथम सर्ग में दिया है कि–सभा यथा महेन्द्रस्य यमस्य वरुणस्य च। शुशुभे राजसिंहस्य रामश्याक्लिष्टकर्मणा:। एक दिन रामजी प्रकरणों के निराकारण के बाद लक्ष्मण को बोले-हे सौमित्र बाहर कोई कार्यार्थी अर्थात्‌ फ़रियादी द्वार के बाहर हो उन्हें आदर के साथ ले आओ। लक्ष्मण ने आदेश पाते ही अदालत के बाहर आकार देखा तो उन्हें कोई व्यक्ति नहीं दिखा क्योंकि वे ख़ुद जानते थे कि धर्मशासित राज्य में कोई फ़रियादी कैसे हो सकता है; उन्होंने भगवान को सूचित किया कि कोई भी फ़रियादी नहीं है। 

लक्ष्मण का जवाब सुनने के बाद रामजी मुस्कुराए और लक्ष्मण से बोले, “एक बार और जाओ और फ़रियादी कि तलाश करो।” लक्ष्मण पुनः द्वार पर आए तो लक्ष्मण ने अदालत के बाहर एक कुत्ते को बैठा देखा। लक्ष्मण को देखकर कुत्ता खड़ा हो गया और रोने लगा। लक्ष्मण ने कुत्ते से पूछा, “तुम्हें क्या काम है? तुम निडर होकर मुझे कहो।” कुत्ता बोला, “मैं जो कुछ कहना चाहता हूँ प्रजापालक, धर्मरक्षक सब प्राणियों पर दया करने वाले रघुनाथ से कहूँगा, आप कृपया कर मेरा संदेश प्रभु को पहुचा दें।”

लक्ष्मण ने कुत्ते कि बात सुनी और श्रीराम के न्यायपीठ की ओर क़दम बढ़ाए और प्रभु को कुत्ते के द्वारा कही पूरी बात सुनाई। श्रीराम ने अपनी अदालत में कुत्ते को फ़रियाद सुनाने की अनुमति देकर लक्ष्मण को उन्हें बुलाने भेजा। लक्ष्मण कुत्ते के पास पहुँचे और प्रभु के समक्ष अपनी बात रखने को कहा। प्रभु की सहमति मिलने के बाद कुत्ते ने लक्ष्मण से कहा, “देवता के मंदिर में, राजा के भवन में और पंडित के घर में हम जैसे जीवों का प्रवेश निषिद्ध है। अतएव मैं वहाँ नहीं जा सकता,” कुत्ते ने आगे कहा, “राम साक्षात्‌ शरीरधारी धर्म हैं, वे सत्यवादी हैं, रण में दक्ष और समस्त प्रणियों के हित में तत्पर है। वे नीति बनाने वाले सर्वज्ञ है सर्वदर्शी और प्रजा का रंजन करने वाले श्रेष्ठ हैं। वे ही चंद्र हैं, वे ही मृत्यु हैं, वे ही यम हैं, वे ही कुबेर हैं, वे ही अग्नि हैं, वे ही इन्द्र हैं, वे ही सूर्य वे ही वरुण हैं। इसलिए लक्ष्मण जी आप प्रजापालक श्रीराम को कह दीजिये कि उनकी आज्ञा के बिना मैं उनके न्यायमंदिर में प्रवेश नहीं करना चाहता हूँ।” 

लक्ष्मण वापस श्रीराम के समक्ष पहुचे और हाथजोड़कर बोले, “हे प्रभु आपके आदेश से मैं बाहर फ़रियादी तलाशने गया था। एक कुत्ता बाहर खड़ा है और आपके समक्ष उपस्थित होने कि आज्ञा चाहता है।”

श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा, “फ़रियादी कोई भी जाति या योनि का क्यों न हो, उसे शीघ्र ले आओ।”  

श्रीराम की आज्ञा पाकर कुत्ता उनकी अदालत में फ़रियादी बनकर खड़ा था। प्रभु राम ने देखा कि उसका सिर फूटा हुआ है और रक्त बह रहा है। श्रीराम फ़रियादी कुत्ते से बोले, “मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ? तुम्हें जो कुछ कहना है बिना डरे कहो।” महर्षि वाल्मीकि रचित श्रीमद वाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड के द्वितीय सर्ग में इस प्रसंग को लिखा है जिसमें कुत्ते के द्वारा श्रीराम के समक्ष राजधर्म, न्यायधर्म आदि परमधर्म कि विस्तार से व्याख्या की गई है–“राजैव कर्ता भूतानाम, राजा चैव विनायक:। राजा सुप्तेशु जागृति राजा पालयति प्रजा:।” अर्थात्‌ राजा ही समस्त प्राणियों का स्वामी और शासनकर्ता है। सब लोग जिस समय शयनकक्ष में गहरी निद्रा में होते है, राजा उस समय जागा करता है। अनेक सद्गुणों की व्याख्या करने के बाद कुत्ता प्रभु श्रीराम से कहता है कि—अज्ञानतावश मैंने कोई चूक कि हो तो मैं सिर नवाकर आपसे क्षमा चाहता हूँ। आप कुपित न हों तो मैं अपनी पीड़ा व्यक्त करूँ। श्रीराम जी बोले, “तुम निडर होकर बतलाओ तुम जो चाहते हो मैं उसे पूरा करूँंगा।” 

कुत्ते ने भगवान श्रीराम कि अदालत में अपनी बात कहनी शुरू की, “एक सर्वार्थसिद्ध भिक्षुक ब्राह्मण है। मैं उसके घर में रहता हूँ। उसने अकारण निरपराध रहते हुए मेरा सिर फोड़ दिया।”

भगवान श्रीराम ने द्वारपाल को भेजकर उस सर्वार्थसिद्ध भिक्षुक ब्राह्मण को बुलाने भेजा। आते ही उस भिक्षुक ब्राह्मण ने प्रभु श्रीराम को नतमस्तक हो पूछा कि किस कारण मुझे बुलवाया है। श्रीराम ने उस ब्राह्मण से प्रश्न किया कि तुमने इस कुत्ते को लाठी से किस कारण मारा है? इसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा? ऐसा क्या नुक़्सान किया जो तुमने इसपर क्रोध करके इसका सिर फोड़ा? तब ब्राह्मण ने श्रीराम से कहा कि—हाँ मैंने क्रोध में इस कुत्ते को अवश्य मारा है। मैं भिक्षा के लिए घूम रहा था और भिक्षा का समय निकल गया था। यह गली के बीचों-बीच बैठा था, मैंने कई बार इस कुत्ते से हटने को कहा, तब यह अपनी इच्छानुसार गली के एक छोर पर बेढंगी जगह खड़ा हो गया। मैं भूखा था ही इसलिए क्रोध में मैंने इसे मार दिया। अब आप मुझ अपराधी को जो भी दंड देना चाहें मुझे स्वीकार है। ब्राह्मण बोला, “हे राजन! आपके हाथों दंड पाने से मुझे नर्क का भय नहीं रहेगा।” श्रीराम ने सभासदों सहित अपनी न्यायपीठ कि जूरी से पूछा और कहा कि इस सर्वार्थसिद्ध भिक्षुक ब्राह्मण को क्या दंड दिया जाये? क्योंकि अपराधी को शास्त्रानुसार दंड देने से प्रजा की रक्षा होती है।” सभी ने एक स्वर में कहा कि शास्त्रों के अनुसार दंड द्वारा ब्राह्मण अवध्य है। न्यायसभा ने श्रीराम को त्रिलोकी का नाथ बताते हुए ब्राह्मण के विषय में ख़ुद निर्णय लेने को कहा। 

न्यायसभा में दंड को लेकर चल रहे परामर्श के बीच कुत्ता बोला, “अगर महाराज राजा रामचन्द्र जी मुझ पर प्रसन्न हों तो मैं एक निवेदन करना चाहता हूँ, प्रभु आपका प्रत्येक वचन एक प्रतिज्ञा ही होता है और आप पहले ही मुझे प्रतिज्ञात्मक रूप से कह चुके हो कि मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ? इसलिए अपनी प्रतिज्ञानुसार मेरा एक मनोरथ पूरा कर दीजिये।”

प्रभु श्रीराम ने पूछा कहो क्या चाहते हो? महर्षि वाल्मीकि रचित श्रीमद वाल्मीकि रामायण में उन्होंने इसे लिखा है कि—प्रतिज्ञातम त्वया वीर कि करोमिति विश्रुतम। प्रयच्छ ब्राह्मणस्यास्य कौलपत्यम नाराधिप॥कालञ्जरे महाराज कौलपत्यम प्रदीयताम। एतच्छुतवा तु रामेण कौलपत्येभिषेचित:॥ 

कुत्ता बोला, “महाराज इस सर्वार्थसिद्ध भिक्षुक ब्राह्मण को कालांजर देश का मठाधिपति बना दीजिये।” प्रभु ने कुत्ते कि बात मानकर उस सर्वार्थसिद्ध भिक्षुक ब्राह्मण का अभिषेक कर कालांजर देश का महंत, चौधरी जैसे गौरवशाली सर्वोत्तम पद पर सजा देने के स्थान पर पुरुस्कृत कर हाथी पर सवार कर उसे सम्मानित कर दिया। न्यायपीठ के सभी न्यायाधीश गुरुजन आदि अचंभित हुए कि आख़िर इस कुत्ते ने सज़ा दिलाने के स्थान पर क्षमा करते हुए दोष को स्वीकार करने वाले सर्वार्थसिद्ध भिक्षुक ब्राह्मण को पुरस्कृत क्यों कराया? इसका रहस्य सभी ने भगवान से जानना चाहा। प्रभु श्रीराम ने मंद-मंद मुस्कुराते हुए कुत्ते से ही कहा कि इस रहस्य को बताकर सबकी शंका का समाधान करो। 

कुत्ते ने हाथ जोड़कर बताया, “प्रभु! मैं इसी कालांजर देश का कुलपति था। मैं बहुत ही अच्छा और एक से एक स्वादिष्ट भोजन करता और अपने नौकर-चाकरों सहित सबको खिलाता, ब्राह्मणों तथा देवों की पूजा करता। सबको उनके कार्यानुसार वेतन देता और देवधन की रक्षा कर नीतिमान, सतोगुणी और सभी प्राणियों के हित में तत्पर रहता था। इन सबके बाबजूद में इस अधम गति को प्राप्त हुआ। यह भिक्षुक ब्राह्मण क्रोधी, धर्मशून्य, अहितकर हिंसक, रूखा बोलने वाला, मूर्ख, निष्ठुर और अधर्मरत है, इसलिए यह भिक्षुक ब्राह्मण मातुकुल की सात और पितुकुल की सात पीढ़ियों को नर्क पहुँचाएगा।” यह भेद सुनकर सभी न्यायपीठ के वेद-शास्त्र ज्ञाता सामंत, न्यायाधिपति कुत्ते द्वारा किए गए न्याय से आश्चर्यचकित हो गए और प्रभु श्रीराम के नेत्र विस्मय से प्रफुल्लित हो गए, कुत्ता जहाँ से आया था वहीं चला गया। 

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