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भिखारियों से शर्मिंदा है देश

 

आज की तारीख़ में दुनिया भर के देशों में भारत का नेतृत्व करने वाले ये राजनेता वोट की भीख माँगते समय भिखारियों के आत्मविश्वास को धराशाही कर वोट की भीख पाकर अपने भाग्य को आज़मा कर भाग्यशाली बन जाते है। असल में देखा जाए तो भारत माँ के भाल पर विराजमान भिखारी ये ही राजनेतागण हैं और ये ही असल में भारत माँ के असली लाल भी हैं, जिनसे देश शर्मिंदा है। आपको आश्चर्य होगा कि भारत का संविधान भी अजब, ग़ज़ब और अनूठा है जहाँ जनता के समक्ष अपनी कमर को इस प्रकार झुकाकर कि मानों उनकी कमर में रीढ़ की हड्डी ही ग़ायब हो और सनातन परम्परा को मात देकर, मतदाताओं के सामने हाथ जोड़कर, पैर छूकर, वोट की भीख माँगने वाले आख़िरकार जीत के बाद अपने सिर पर सत्ता का राजमुकुट धारण कर सरकार चलाते हैं। एक और ऐसे ग़रीब, मजबूर, लाचार, दुखियारे बदनसीब लोग होते हैं जिन्हें इन सरकारों की ओर से, इनकी योग्यताओं को दरकिनार रखकर इनके रोज़गार, स्वास्थ्य, पढ़ाई आदि की व्यवस्था न किए जाने पर, वे अपने दिल से बेशर्मी को त्यागकर भीख माँगने निकलते है, वहीं दूसरी ओर भारतीय संस्कृति में दान-पुण्य से मोक्ष पाने की देशना के रहते, लोगों द्वारा खुलकर भीख दिए जाने पर अधिकांश लोग इसे अपना व्यवसाय समझ कर भीख माँगते हैं तो वहीं दूसरी ओर गिरोहों के रूप में बच्चों-महिलाओं को अगवाह कर शारीरिक अपंग बनाकर भीख मँगवाने का कारोबार चरम पर है। यह एक गंभीर अपराध है पर ऐसे गिरोहों के सरगनाओं पर देश के भिखारी राजनेताओं का वरदहस्त होने से प्रशासन ख़ामोश रहता है। 

देश समस्याओं से ग्रस्त है, इसलिए समस्याएँ कभी ख़त्म नहीं होती हैं। सरकारें विकास के नए आयाम हासिल करने के लिए अरबों रुपये अख़बारों में विज्ञापन प्रकाशित कर अपने विकास का ढिंढोरा पीटती है, विकास भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा धराशाही दिखाई देता है, सरकारें तत्काल दूसरों पर दोषारोपण कर अपना पल्ला झाड़ती हैं। एक ओर सामान्य भिखारी मंदिरों, चौराहों, होटलों, पार्कों, राष्ट्रीय स्मारकों के आसपास विदेशी सैलानियों सहित अधिक भीड़वाले क्षेत्र में भीख माँगने बैठते हैं दूसरी ओर भिखारियों के कारण देश की बदनामी न हो, स्थानीय प्रशासन सहित पुलिस प्रशासन भिखारियों को डण्डे के बल पर खदेड़ता दिख जाएगा। आश्चर्य की बात है कि देश के भीतर कटोरा लिए इन भिखारियों के कारण देश की बदनामी राजनेताओं को दिखाई दे जाती है पर उन राष्ट्रप्रमुख भिखारियों का क्या जो देश के विकास के नाम पर, प्रदेशों में मेट्रो, बिजली, पानी, सुरक्षा, विकास, शिक्षा, संस्कृति आदि तमाम बनती-बिगड़ती, योजनाओं के नाम पर अमीर देशों के सामने कटोरा लेकर भीख माँगकर लाते हैं? क्या इससे देश बदनाम नहीं होता, क्या राजनेताओं का इस प्रकार भीख माँगना देश-प्रदेश की गरिमा के विपरीत नहीं है? 
 
प्रेमी हमेशा प्रेम, प्यार, शरीर की भीख माँगता है। गृहणी घरों में शकर, चाय-पत्ती, आलू-टमाटर, एक कटोरी दाल, बेसन आदि ख़त्म हो गए, कल लौटा देंगे कहकर भीख माँगती है; उनका कल नहीं होता, और कोई न कोई बहाना बनाकर घरों में सुबह शाम भीख के लिए खड़ी होती है। कारण बढ़ती महँगाई के समक्ष क‍इयों के चूल्हे एक टाइम सुलग ही नहीं पाते हैं और लोग भूखे सोने की बजाए अड़ोस-पड़ोस में ताका-झाँकी कर ख़ुद के जीवित होने का यह उपाय सही समझते हैं। शिक्षा हो या खेल, सांस्कृतिक कार्यक्रम हो या लेखन हर जगह भीख माँगने वालों की भीड़ लगी है। महत्वाकांक्षी पद, प्रतिष्ठा की भीख माँगता हैं। नेता टिकिट के लिए भीख देकर वोट की भीख माँगता है, चमचा, भक्त आदि अपने नेता से नोटों की भीख माँगकर वोटों की ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त का ठेकदार होता है। लेखक, कवि, रचनाकार आदि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों से प्रकाशन की भीख माँगता है। पत्रकार सनसनीखेज़ ख़बरों के पुरस्कारों का बाज़ार सजने पर पुरस्कारों की भीख, श्रेष्ठ रचनाओं, किताबों के लिए अकादमी से भीख, सरकार के अन्य बड़े पुरस्कारों के राग अलापनों वाले अधिकारियों द्वारा इन्हें प्राप्त करने की भीख माँगी जाती है। हर घर में, मोहल्ले में, वार्ड में, क़स्बे में, गाँव में, शहर में सभी ओर भिखारी ही भिखारी हैं। आप भीख देने से इंकार कर भी दें तो ऐसे भी बड़े पहुँचे भिखारी मिल जायेंगे जो आपकी जेबों से ताक़त से ज़बरदस्ती भीख लूट लें। 

आजकल भीख का चलन बदला है, इन्टरनेट से, टीवी आयोजनों से मोबाइल नम्बर, बैंक खाता नम्बर देकर भीख माँगी जा रही है। दूसरे चलन को आप स्वयं अपने ज़िले की तहसील, जनपदों, ग्रामपंचायतों में देख लीजिए प्रशासन के आला अफ़सर से लेकर, संस्थाओं के अध्यक्ष, मंत्री आदि तमाम तरह के सफ़ेदपोश मिल जाएँगे जो ज़िलों के अधिकारियों को रसीद गड्डिया थमाकर, नहरों, कृषि संस्थानों से शुरूआत कर, शहरी-ग्रामीण सभी राशन दुकानों, सहकारी समितियों, ग्राम पंचायतों, पुलिस थानों, आरटीओ आदि अनेकों को वितरित कर, साल में एक-दो बार करोड़ों रुपये की भीख चंदे के रूप में एकत्र कराकर सरकार के मंत्रियों की उपस्थिति में सम्मान समारोह सहित, सात दिवसीय कथा-प्रवचन कराकर भीड़ एकत्र कराएँगे फिर भव्य आयोजन, प्रसादी-भण्डारा होगा, लाखों ख़र्च होगा, करोड़ की भीख इकट्ठी होगी। नामी-गिरामी बड़े लोगों एवं नेताओं द्वारा भीख माँगने के लिए रसीद बुक का प्रयोग करना धर्मपरायण समझा कर, धर्मध्वजा की रक्षा हेतु कहा जाता है, पर चन्दे के नाम पर माँगी गई यह राशि भीख ही तो कहलायेगी। 
 
देश के विकास के लिए केन्द्र सरकारें दूसरे देशों से, प्रदेश के विकास की योजनाओं को अमली जामा पहनाने के लिए प्रदेश सरकारें देश की दिल्ली सरकार के सामने अपना ख़ाली कटोरा लिए हमेशा भीख माँगने के लिए खड़े होते हैं। पर इन सरकारों की अकर्मण्यता के कारण, अशिक्षित ही नहीं अपितु स्नातक, स्नातकोत्तर तक की शिक्षा के बाद, व्यक्ति भीख माँगकर अपने घर-परिवार का पालन-पोषण करने को विवश हो तो उस पर पाबन्दी क्यों? दाता के नाम पर ख़ुद के स्वाभिमान को चूर-चूर करने वाले इन अशिक्षित पढ़े-लिखे भिखारियों को सम्मानजनक जीवन प्रदान करने में अक्षम साबित हुई सरकारें इनके लिये अभिशाप हैं, क्योंकि अपना सर्वस्व दाँव पर लगाकर रोज़-रोज़ भीख माँगकर घर परिवार चलाते हुऐ कई लोग शर्मसार हो समय से पहले ही मर-खप जाते हैं। 

अंत में स्मरण कराना चाहूँगा कि जिस प्रकार मैंने अपने बचपन में एक गीत सुना था, ‘दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया’, उसे आपने भी सुना होगा। जिसका अर्थ होता है कि भगवान देने वाला दाता है और दुनिया का हर प्राणी उसके समक्ष मात्र हाथ पसार कर माँगने वाला एक भिखारी की औक़ात से ज़्यादा कुछ भी हैसियत नहीं रखता है। हाँ, अगर भगवान देना चाहे तो पात्र होने पर तीनों लोक का साम्राज्य किसी एक को भीख में दे सकता है। जिसमें दो लोक की सम्पत्ति अपने मित्र सुदामा को देने का प्रसंग जगज़ाहिर है। एक अन्य प्रसंग के अुनसार इन्द्रासन से इन्द्र को हटाकर सभी देवताओं से असुरराज राजा बलि ने त्रिलोक पर विजय प्राप्त कर ली, तब यही दाता कहलाने वाले भगवान बामन के रूप में असुरराज बलि से दान माँगने अर्थात्‌ भीख माँगने पहुँच जाते हैं और तीन पग में उसका सर्वस्व भीख में प्राप्त कर भिखारी बन चुके देवताओं को लौटा देते हैं। 

स्पष्ट है इस दुनिया में सभी भिखारी हैं और जन्म देने वाला दाता/मालिक है जो सबका प्रारब्ध लिखकर उन्हें पारितोषित देता है। जिसमें अगर प्रारब्ध कर्मानुसार कोई कर्म से हारकर सीधे-सरल मार्ग से भीख में मिलने वाली दो रोटी की जुगाड़ करने हेतु शर्म त्याग कर भीख माँगे, यह उसके लिए शर्मिदा करने वाली बात होगी पर इसके लिये ज़िम्मेदार कौन है? माँ भारती के कपाल पर असली भिखारी वे हैं जो देश का नेतृत्व करने के दरम्यान, योग्य शिक्षितों तक को भिखारी बनने के लिए मजबूर कर बेशर्मी साधे हैं और अंतरराष्ट्रीय देशों के समक्ष अपना कटोरा रखने में शर्म महसूस नहीं करते हैं। ऐसे भिखारी नेताओं से यह देश शर्मिंदा है और शर्मिंदा रहेगा। 

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