नयनों से बात
काव्य साहित्य | कविता आत्माराम यादव ‘पीव’1 Oct 2023 (अंक: 238, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
तेरे मेरे सारे शब्द अब पड़ते हैं अधूरे
हम नयनों से बात करें शब्द हों पूरे।
प्रेम भरे शब्दों को हम कह-कह के ऊबे
नयनों में नयन डाल आज हम डूबे।
साँसों से साँस चले सहेलियों के साथ चले
छेड़ती हैं तुमको मेरे प्यार की ये बोलियाँ।
थिरकता पवन चले तेरे आँचल को तंग करे
खेलता है तुझसे वह जी भर अठखेलियाँ।
कस्तूरी लुटाये चलें ज़ुल्फ़ें बिखराए चलें
धड़कती हैं मन मेरे घटा मेघ बिजलियाँ।
उपवन में आज चलें फूलों के साथ चलें
हमें घेरती हैं प्यार भरे भँवरों की टोलियाँ।
बाँहों में डाले बाँह चलें बेसुध आज़ाद चलें
धड़कते हैं दिल, मिले बँधनों से आज़ादियाँ।
नग़्मे सुनाये चलें झूम-झूम इतराए चलें
कम पड़ती हैं प्यार में सागर सी गहराइयाँ।
नयनों से बात करें सुध बुध बिसरायें चलें
नई लिखते हैं हम प्रेम इतिहास की कहानियाँ।
शब्दों को दफ़्नाये चलें जिससे लोग नई बात करें
आओ ऐसा काम करें जिसे ज़माना सारा याद करे।
मिसाल अपनी बनाये चलें पुष्प प्रेम के उगाये चलें
जब सदा जिसे याद करें हमें रोज़ नई सौग़ात मिले।
होंठ सभी बुदबुदाए चलें ऐसी मीठी सुरभित बयार चले
गीतों के बोल उठें छाया प्यार की हम बनाये चलें
सभी छंदों के हम बंध खोलें हृदय के सब रंध्र खोलें
सप्तरंग संग घोलें प्रेम तिक्त हम प्राण धोलें।
प्राणों में हम साँस घोलें जीवन के सब द्वार खोलें
नयनों से बात करें ले मधुवन का उल्लास हिल्लोरें।
विरह नयन छलक पड़े रिक्त हृदय का हम कलश भरें
मिलने को हम आज चले सागर में समाए चलें।
सरिता बन साथ चलें नयनों से बरसात करें
धरती को बनाते चले प्रेम की हम हरियालियाँ।
‘पीव’ जिसे याद करे, आशाओं के हम बीज बोएँ
बिखराये चलें इतिहास में हम प्रेम कहानियाँ।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
सांस्कृतिक आलेख
- गिरिजा संग होली खेलत बाघम्बरधारी
- ब्रज की होली में झलकती है लोक संस्कृति की छटा
- भारतीय संस्कृति में मंगल का प्रतीक चिह्न स्वस्तिक
- मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा और विसर्जन का तात्विक अन्वेषण
- राम से मिलते हैं सुग्रीव हुए भय और संदेहों से मुक्त
- रामचरित मानस में स्वास्थ्य की अवधारणा
- रावण ने किया कौशल्या हरण, पश्चात दशरथ कौशल्या विवाह
- शिव भस्म धारण से मिलता है कल्याण
- स्वेच्छाचारिणी मायावी सूर्पणखा की जीवन मीमांसा
कविता
- अधूरी तमन्ना
- अरी आत्मा तू जाये कहाँ रे
- आज का कवि
- एक टीस अंतरमन में
- एक टीस उठी है . . .
- कितना ओछा है आदमी
- कौआ, कब कान्हा के हाथों रोटी छीनेगा
- क्षितिज के पार
- जाने क्यों मुझे देवता बनाते हैं?
- नयनों से बात
- नर्मदा मैय्या तू होले होले बहना
- निजत्व की ओर
- मातृ ऋण
- मुझको हँसना आता नहीं है
- मुझे अपने में समेट लो
- मेरे ही कफ़न का साया छिपाया है
- मैं एक और जनम चाहता हूँ
- मैं गीत नया गाता हूँ
- ये कैसा इलाज था माँ
- वह जब ईश्वर से रूठ जाती है
- सपनों का मर जाना
- सबसे अनूठी माँ
- समय तू चलता चल
- सुख की चाह में
- हे वीणापाणि आज इतना तो कीजिये
- होशंगशाह क़िले की व्यथा
साहित्यिक आलेख
आत्मकथा
चिन्तन
यात्रा वृत्तांत
हास्य-व्यंग्य कविता
ऐतिहासिक
सामाजिक आलेख
सांस्कृतिक कथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं