डॉक्टर लुटेरा एक समान
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता आत्माराम यादव ‘पीव’1 Apr 2024 (अंक: 250, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
ओ नाच जमूरे छमा-छम,
सुन बात पते की एकदम
हाथ पैर में हड़कन होती है,
सर में गोले फूटे धमा-धम।
आँ . . .छी ज़ुकाम हुआ या
सीने में दर्द करे धड़ाधड़क,
छींक गरजे तोपों सी या
ख़ून नसों में फुदके फुदक-फुदक।
मेरा जमूरा बतायेगा, क्यों
डॉक्टर लुटेरा नहीं किसी से कम
सुन मेरे प्यारे सुकुमार जमूरे
तेरी बात लगे सही एकदम।
यह जुमूरा बतलाता है एक
डॉक्टर और लुटेरे का ताना बाना
हे भाई तूने अपने डॉक्टर को
क्या अब तक नहीं पहचाना?
ग़ौर से देख डॉक्टर और
लुटेरे में एक समानता है
लुटेरा नक़ाब में मुँह छुपाये,
डॉक्टर मास्क पहनता है।
जान बचाना चाहो तो,
माल सारा बाहर निकालो
लुटेरे की इस धमकी से
झुक जाता है इंसान यारो।
जमूरा कहता है जान की
धमकी अब डॉक्टर भी देता है
कई प्रकार के टेस्ट कराकर,
वह मरीज़ को लूट लेता है।
लुटेरा हाथ में चाकू थामे,
और डॉक्टर थामे छुरी
दोनों के हाथों लुटना ही हैे,
इंसान की क़िस्मत बुरी।
पेशा लुटेरे का ख़ून से खेलना,
खेले ख़ूनी घटनाएँ
ख़ून खराबे से बचने,
लुटेरे से सब लुट जाएँ।
जमूरा कह रहा डॉक्टर
और लुटेरा दोनों एक समान
लुटेरा पहने नक़ाब,
मास्क सर्जन की पहचान।
जान बचाना चाहते
धमकाना दोनों का काम
आदमी ख़ुद ही लुट जाता,
दोनों को मिलते मुँहमाँगे दाम।
हथियार लुटेरे का चाकू,
डॉक्टर के हाथ में छुरी
जान चली जाने के डर से,
दोनों की इच्छायें हो पूरी।
जमूरा बता रहा डॉक्टर
और लुटेरा, दोनों एक समान
ख़ून से खेलने का पेशा,
है लुटेरे और डॉक्टर के नाम।
धन के भूखे दोनों हैं,
डराना-धमकाना दोनों का काम
आज व्यापारी हुए डॉक्टर,
मुनाफ़ा कमाना इनका ईमान।
‘पीव’ वैद्य सुषेण से कहाँ मिलेंगे,
पुकारे भारत की आवाम।
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