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मैं एक और जनम चाहता हूँ

 

मैं एक और जनम चाहता हूँ, 
मेरे हमदम मेरे प्यार के लिये। 
प्यार अधूरा रहा इस जनम में, 
अगला जनम मिले, बस प्यार के लिये। 
नये जनम का मीत, बस प्रीति ही करें
दिलोजिगर में समा ले, अपने आँचल में रखे। 
सुबह उठे तो होंठों पे, उसके हो प्यारी हँसी
चेहरा कुंदन सा दमके, वो हो मेरी बाबरी। 
हर घड़ी उसकी, मेरे इंतज़ार में बीते
शाम यू स्वागत करे, जैसे फ़ासले सदियों के। 
हसीं रातें हों, मेरे अरमां सभी पिघल जायें, 
आरज़ू बचे न कोई, प्रीति ऐसी मिल जाये। 
मेरे सुखों को वह, अपनी वफ़ा की ज्योति दे दे
मेरे दुखों को वह, अपने आँसुओं के मोती दे दे। 
समय कितना भी कठिन हो, वह कभी न डगमगाए
बात जनम मरण की हो, उसके माथे पे बल न आये। 
‘पीव’ मुझे ऐसा ही प्यार मिले, 
जिसके संग हो मेरी भाँवरें
प्यार की वह ऐसी सरिता हो, 
जिसमें अनहाये ही नहाए रहें हम। 
जीवन में प्यार कभी न थमे, 
यह अभिलाषा पूरी हो साँवरे
 
मैं एक और जनम चाहता हूँ, 
जिसमें मिले ऐसी हमदम॥
 

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