नाक जो रोज़ कट रही है!
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी आत्माराम यादव ‘पीव’15 Jan 2024 (अंक: 245, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
संसार में जितने मनुष्य और जीव है, उतनी उनकी नाकें हैं और हर एक को अपनी नाक जी-जान से प्यारी है तथा उसकी नाक औरों की नाक से बहुत ऊँची हो जाये तथा उसकी नाक के चर्चे देश-दुनिया में हों तो उसे अपनी नाक पर बहुत गर्व होता है। अब नाक की बात निकली है तो अब नाक कार्यक्षेत्र के संस्थानों की भी होने लगी जहाँ उनका सफलता के झण्डे गाड़ना नाक बचाना और असफल होना यानी उनके संस्थान की नाक कटना है। अब व्यक्तियों के साथ विभागों, संस्थानों की भी नाक सर्वोपरि हो गयी है, वह भी कटने को तैयार नहीं और उस संस्थान के लोग ख़ुद और संस्थान की नाक कटने देना नहीं चाहते हैं। यह संसार स्वार्थियों के वशीभूत है और हरेक स्वार्थी अपने-अपने स्वार्थो के सागर में, स्वार्थ के जहाज़ चलाकर अपनी नाक को आसमान की ऊँचाई तक लम्बा करने पर तुला है। अगर ज़ुकाम हो जाये तो सुसरी नाक ख़ुशबू से वंचित हो जाती है पर असली सुगन्ध जिसकी नाक है, उसकी कीर्ति अर्थात् नाक के ज़्यादा बहुत ज़्यादा, सबसे ज़्यादा ऊँचा होने में है।
लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक एक बार काटी तब लोकोपचार में यह नाक लंका की हो गयी और लंका ने अपनी नाक बचाने के लिये लंका को मिटा दिया। हमारी नाक हर पल, हर जगह, ऐसी कट रही है जैसे नाक न हुई सब्ज़ी-भाजी हो गयी हो और नाक बचाने, कटाने की मनोवृत्ति सभी में बराबर विद्यमान है। ऑफ़िसों में काम होने न होने, समाचार-विज्ञापन छपने न छपने, नौकरी लगने न लगने, इलाज ठीक होने न होने, स्कूल में बच्चों का उत्तीर्ण होने न होने से लेकर सभी कामों सहित विकास और विध्वंस को नाक कटने-कटाने से जोड़ लिया है, इसलिये कोई भी नाक को नीचे नहीं होने देना चाहता, कटने देना नहीं चाहता तभी सब नाक को कटने से बचाने में लगे हुए हैं।
अब किसकी नाक की बात करूँ जो कट नहीं रही हो, सबकी नाक कट रही है और सब नकटे हो गये हैं पर कोई ख़ुद को नकटा मानने को तैयार नहीं। हाल ही में रामजी बाबा मेले में किसकी नाक कटी, सबको पता है पर वे झट नाक पकड़कर बता चुके कि देख यह रही मेरी नाक। आप मिनिस्टर, बैरिस्टर, कलेक्टर, डॉक्टर, रईसज़ादा, कोतवाल, पत्रकार, व्यापारी, ठेकेदार, लाट सहाब रईसज़ादे, या आम जनता—कुछ भी हो सकते हैं, आप सोचोगे, आख़िर आपकी नाक कटे क्यों? अरे भई जब अपनी नाक पर मक्खी नहीं बैठने देता हूँ तो तुम बेमतलब बकवास क्यों कर रहे हो कि नाक कट गयी। सब दावे करते हैं कि मेरे रुत्बा है, मान-सम्मान है पूरा नगर-गाँव मेरे पैरों में झुकता है और सबसे बड़ी बात ये है कि मेरी नाक सबसे ऊँची है, तो वह कटेगी कैसे? भैया जितना पूजा-पाठ, धर्मकर्म करता हूँ उतना कोई नहीं करता है और ईश्वर के दरबार में भी जितना ईश्वर का सम्मान नहीं वहाँ मेरे भक्त मिलेंगे और भगवान के नहीं मेरे पैर छुअेंगे। तब तुम समझ सकते हो कि मेरी नाक का मुक़ाबला किसी और की नाक से नहीं किया जा सकता है। यह ईश्वर की ही कृपा है कि मेरी नाक बची हुई है और मेरे विरोधी यह बेवजह गरम दुर्गन्धयुक्त हवा फैला रहे हैं कि सबके साथ मेरी भी नाक कट गयी। नाक आख़िर में नाक है और हर व्यक्ति की दूसरे की नाक मैं अंतर है। वैसे ही जैसे नदी के दो किनारे कभी मिलते नहीं, ठीक वैसे ही कुछ लोगों की नाक भी विशेष होती है और वे हर समय भगवान के गले पड़े घिघियाते रहते हैं कि उनकी नाक बची रहे, भले दूसरे की जड़ से कट जाये।
प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्रीगणों के दरबार में, साधुसंतों के व्यवहार में, श्रद्धा के आहार में, प्रेम के उपहार में, स्वतंत्र व्यापार में स्वदेशी कारोबार में, प्रकाश या अंधकार में, सौन्दर्य-कुरूपता में, माता पिता के प्यार, ग़रीबों से दुलार में, ईमानदार दुकानदार में जहाँ कहीं भी देखिये समय-समय पर किसी न किसी की नाक कटने, बचने की ख़बरें रोज़ आती हैं। प्रायः देखा जा सकता है कि रात के अँधेरे में चोरी-छिपे हर बुरा-गन्दा काम करने वाले शख़्स और संस्थान अपनी नाक सलामत रखते हैं और भूल जाते हैं कि करम का लेख नहीं मिटता, जो कर रहा हूँ उससे नाक ही नीची हो रही है, पर मूर्ख मन को यही तसल्ली दिलाते हैं कि भले उनके हाथ कोयले की दलाली में काले हैं, पर भगवान तो उनका है, उनके साथ है। यही बात इन बिन स्कूल गये ख़ुद को डीलिट समझने वाले बुद्धपुरुषों को समझ नहीं आती और वे अपने मन की चकाचौंध में अपनी नाक को सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम मानकर ख़ुश रहते है।
सुख बड़ा ही नाज़ुक है, विपत्तियों के भय से मुक्त होने के लिये दुनिया भर के लोग दुखी होते हुए भी सुखी होने का भ्रम पालकर अपनी नाक को, आई-मीन अपने-अपने ओहदे का तमगा लगाकर अपनी-अपनी नाक ऊँचा करने के लिये अपने मनरूपी भैसों के आगे बीन बजाकर ख़ुश रहना सीख गये हैं। ऑफ़िस या कोतवाली कोई भी हो, वहाँ सुबह से अगली सुबह तक आने वाली अर्जियों-रिपोर्टों की जानकारी पाने वाले कुछ ऊँचे लोग, ऊँचे ऊँट की तरह होते हुए अपने कुटिल मन के रेगिस्तान में धमाचौकड़ी करते मिल जायेंगे। ये नाक कट जाने का डर दिखाते हैं कि भैया अब तक आपकी घर, परिवार, समाज में जो नाक बची है, अगर बात छप जाये, टीवी पर आ जाये, या मामला दर्ज हो जाये तो पुलिस घर से उठा लेगी। तब कहीं नाक दिखाने लायक़ नहीं रहोगे। बस ऐसे ही ऊँट-ऊँटनियाँ अपने मन के कोढ़ से डरकर, गाँधीछाप मनीराम पाकर, लक्ष्मीसुख में मग्न हो, पुलिस या अधिकारियों को शिकायत रफ़ा-दफ़ा के बदले धनीराम कम्पनी की एनासिन देकर, सबकी नाक कटने, कटाने से बचाने का उपक्रम पूरा करते हैं। ऑफ़िसों व थानों में 80 प्रतिशत अर्जियाँ नाक बचाने-कटाने के भय के भूत को छप्पनभोग का कलेवा खिलाती, सिस्टम पर अट्टहास करती लाचार-गरीबों की मनमर्ज़ियों से मर्ज़ हो जाती हैं। नाक बचाने पर ऊँचे ऊँट-ऊँटनियाँ अपनी उदारता का एहसान थोपकर ख़ुद के पुण्यात्मा होने का लोहा मनवा लेते हैं। वही लोकोपचार, देशभक्ति और जनसेवा में सफलता का तमगा इसी सिस्टम से पा जाते हैं।
जिसकी जितनी ऊँची आसमान छूती नाक है वह रोज़ उतनी कटती भी है। जो चाहे कि उसकी नाक न कटे तो यह असंभव है, क्योंकि आज दुनिया में हर देश, हर सरकार एक दूसरे की नाक काटने में लगी है इसलिये जो काम सरकारें कर रही हैं वह हर व्यक्ति कर रहा है और दिन-रात चौबीसों घंटे जिनके पास काम नहीं है, वह नाक काटने और कटवाने में व्यस्त है। रोज़ कहीं न कहीं किसी ऊँचे ख़ानदान का बेटा-बेटी ग़लत राह अख़्तियार करता है। उसकी नाक कटने से बचाने को बोलियाँ लगायी जाती हैं, सौदा होते ही नाक बच जाती है। नकटों की भी अपनी महिमा है वे जब भी समाज में उनकी नाक कटने को लेकर खुसरपुसर सुनते हैं, तुरन्त शहर के बीचों-बीच उस कटी नाक को साबित बताने के लिये सम्मान करेंगे, नाक पर पुष्पमालाओं का सेहरा बाँधेंगे। जो अधिकारी या नेता गाँवों-शहरों की ज़मीनों को ग़ायब करवा कर चहेतों में मूँगफली जैसा बाँट दे, फ़र्ज़ी फ़सल पैदाबार का रिकार्ड तोड़े, नदियों-तालाबों पर काग़ज़ के पुल बाँध दे, सरकार की सारी योजनाओं को धरातल पर लाये बिना बजट ख़र्च कर सफलतापूर्वक कार्यान्वित बतलाये और उसे ईमानदार-कर्तव्यनिष्ठ का तमगा देने के लिये दिल्ली-भोपाल में राष्ट्रपति-राज्यपाल से सम्मानित कराकर उसकी नाक दुनिया में मशहूर करने के लिये प्रेस कॉन्फ़्रेंस बुलवायेंगें, ताकि उसकी नाक को भी उच्चत्तम ऊँचा कर उसकी नाक को चार-चाँद लग सकें।
ऐसे में जिनकी नाक कट चुकी है वे विवाद भी करेंगे—तू महामूर्ख है जो अपनी नाक को पुरस्कारों से चकाचौंध कर रहा है, अरे अपनी नाक से मेरी नाक की तुलना कर रहा है, अरे तेरी नाक की औक़ात क्या है, मेरी नाक के आगे किसी की नाक की बराबरी करना ठीक नहीं। कहाँ तेरी नाक और कहाँ मेरी नाक? चचचचल हट पगले, ऐसा कहीं होता है कि कोई खानाबादोश आकर हमारी नाक काटे और हमें पता ही नहीं चले और हम नकटे जो जायें? जब हमारे ही अपने घर के लोग पूरी ताक़त लगाकर नाक काटने को तैयार हैं और नाक है कि कटती ही नहीं? अअऔर तू ही ख़ामोख़ाँ कहता है कि भैया पेपरों में इतना छपा, आपकी बड़ी बेइज़्ज़ती हो चुकी है और शहर के सामने आपकी नाक कट गयी। मैं इतना गँवार थोड़े हूँ जो तेरी बात मान लूँगा। मुझे मेरी अपनी नाक पर गर्व है कि और सुन मेरी ही नहीं मेरे घर-परिवार के हर व्यक्ति की नाक पर गुमान है। यह अलग बात है कि कुछ लोग नाक काटने का सोचकर कुछ भी छापते रहते हैं; उनके छापने से, सोशलमीडिया में रायता फैलाने से मेरी नाक पर मक्खी तक नहीं बैठती, फिर काटने की बात सपने में भी सोची नहीं जा सकती है। आये दिन मैं रोज़ देखता हूँ किसी न किसी की नाक को कटते हुए, जैसे नाक न हुई साँप का बच्चा हो गयी, जो बढ़ा होने से पहले ही लोग देख लें तो बढ़ने नहीं देते, तुरन्त मार देते हैं।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
60 साल का नौजवान
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | समीक्षा तैलंगरामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…
(ब)जट : यमला पगला दीवाना
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | अमित शर्माप्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
सांस्कृतिक आलेख
- गिरिजा संग होली खेलत बाघम्बरधारी
- ब्रज की होली में झलकती है लोक संस्कृति की छटा
- भारतीय संस्कृति में मंगल का प्रतीक चिह्न स्वस्तिक
- मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा और विसर्जन का तात्विक अन्वेषण
- राम से मिलते हैं सुग्रीव हुए भय और संदेहों से मुक्त
- रामचरित मानस में स्वास्थ्य की अवधारणा
- रावण ने किया कौशल्या हरण, पश्चात दशरथ कौशल्या विवाह
- शिव भस्म धारण से मिलता है कल्याण
- स्वेच्छाचारिणी मायावी सूर्पणखा की जीवन मीमांसा
कविता
- अधूरी तमन्ना
- अरी आत्मा तू जाये कहाँ रे
- आज का कवि
- एक टीस अंतरमन में
- एक टीस उठी है . . .
- कितना ओछा है आदमी
- कौआ, कब कान्हा के हाथों रोटी छीनेगा
- क्षितिज के पार
- जाने क्यों मुझे देवता बनाते हैं?
- नयनों से बात
- नर्मदा मैय्या तू होले होले बहना
- निजत्व की ओर
- मातृ ऋण
- मुझको हँसना आता नहीं है
- मुझे अपने में समेट लो
- मेरे ही कफ़न का साया छिपाया है
- मैं एक और जनम चाहता हूँ
- मैं गीत नया गाता हूँ
- ये कैसा इलाज था माँ
- वह जब ईश्वर से रूठ जाती है
- सपनों का मर जाना
- सबसे अनूठी माँ
- समय तू चलता चल
- सुख की चाह में
- हे वीणापाणि आज इतना तो कीजिये
- होशंगशाह क़िले की व्यथा
साहित्यिक आलेख
आत्मकथा
चिन्तन
यात्रा वृत्तांत
हास्य-व्यंग्य कविता
ऐतिहासिक
सामाजिक आलेख
सांस्कृतिक कथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं