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सबसे अनूठी माँ

 

दुख आया तो दवा नहीं ली
हारी नहीं, तू ख़ुद से लड़ी थी
पिताजी देखे, सख़्त बहुत थे
तनख़ा लाकर वे दादी को देते
पाई पाई को तू तरसा करती
मजबूरी थी तू मज़दूरी करती
बेकार हुए जब कपड़े पिता के
झट सिलवाती, रहे न हम उघड़े
वे भी क्‍या दिन अपने थे माँ
होटल में बरतन हम धोते थे माँ
हिमालय सा दुख, अकेले झेला
नियति ने खेल तुझसे खेला
एक नहीं कई बार हुआ था
गुनियों का सत्‍कार हुआ था
बीमारी से तेरा हाल बुरा था
डॉक्टर थे पर तुझे न दिखाया
दादी ने गुनियों को बुलवाया
नस उठी है उसे बिठलाना है
गुनियों ने यह फ़रमान सुनाया
दहकती आग में सरिये सुलगाये
तेरी पीठ, छाती में दाग लगाये
सह न सकी दर्द तू चीत्कार उठी
पीव कोई न पसीजा बने सभी हठी। 
गुपचुप आँसू पी, तू चेहरे से मुस्काई मा
दुख तेरा हिमालय सा, तू बताती राई माँ। 

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