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रावण ने किया कौशल्या हरण, पश्चात दशरथ कौशल्या विवाह

 

अमरता का वरदान पाकर अतुल्य बलशाली राक्षसराज रावण दिव्यास्त्रों की प्राप्ति के पश्चात अहंकार से चूर धरती पर ही नहीं अपितु देवलोक के देवताओं पर हमला कर अपनी जीत की पताका फहराता रहा और सृष्टि की संपूर्ण व्यवस्थाओं पर अपना अधिकार मानता रहा। एक समय देवर्षि नारद रावण से मिले और मधुर स्वर में बोले, “राक्षसराज! आप जैसा परम तपस्वी, तेजस्वी और पराक्रमी राक्षस संसार में दूसरा नहीं है। आपकी शक्ति के समक्ष देवगण भी भयभीत हैं। निसंदेह आपके बाद राक्षस-कुल में कोई दूसरा पराक्रमी नहीं होगा। 
“हालाँकि आप वह्माजी के प्रपौत्र हैं, लेकिन उन्होंने आप से छल किया है। याद कीजिए राजन्, उन्होंने वर दिया था कि आपकी मृत्यु मनुष्य के अतिरिक्त अन्य किसी के ‌द्वारा नहीं होगी। फिर यह सृष्टि का नियम भी है कि जो जनमा है, एक-न-एक दिन उसकी मृत्यु अवश्य होगी। यदि आपको मेरी बात पर विश्वास न हो तो ब्रह्माजी से पूछ लें।” 

रावण ने ब्रह्मासे पूछा, “हे ब्रह्मन्! मेरा किसके हाथों मरण होगा? यह आप स्पष्ट कहिये।”

ब्रह्मा जी ने कहा कि अयोध्या के राजा दशरथ की पत्नी कौशल्या से साक्षात् जनार्दन भगवान राम आदि चार पुत्रों के रूप में उत्पन्न होंगे। उनमें से राम तुम को मारेंगे। राजा दशरथ के लग्न का आज से पाँचवाँ दिन निश्चित किया है। ब्रह्मा का यह वचन सुना तो रावण बहुत से राक्षसों को साथ लेकर शीघ्र अयोध्या नगरी को चल पड़ा। वहाँ जाकर और घोर युद्ध करके उसने नौका पर बैठे राजा दशरथ को पराजित किया और पाद प्रहार से नाव को तोड़कर सरयू के जल में डुबो दिया! आनंद रामायण के सारकाण्ड प्रथम सर्ग में इसका यूँ उल्लेख मिलता है कि:

इक्ष्वाकुवंशप्रवरः क्षत्रियो लोकविश्रुतः। 
बलवान् सरयुतोरेऽग्योध्यायां पार्थित्रोत्तमः॥३०॥

नाम्ना दश्शरथः श्रीमान् जम्बूद्वीपपतिर्महान्। 
शशास राज्यं धर्मेण सैन्येन महताऽऽश्रुतः॥३१॥

अयोध्यायास्तु सान्निध्ये देशे श्रीकोसलाह्वये। 
कोसलायां महापुण्यः कोसलाख्यो नृपो महान्॥३२॥

तस्यासीदुहिता रम्या कौसन्या पतिकामुका। 
तस्या दशरथेनैव विवाहो निश्चितो सुदा॥३३॥

लग्नार्थं तं समानेतुं दूता दशरथं नृपम्। 
ययुत्रिनिश्चयं कृत्वा विवाहृदिवसस्य च॥३४॥

तदा दशरथश्चापि साकेते सरयूजले। 
नौकास्थो जलजा क्रीडां चक्रे वे मंत्रिबंधुभिः॥३५॥

आनंद रामायण के प्रसंग के अनुसार अयोध्या की सीमाओं के पास ही कोसलदेश था जहा कोसल नाम का एक बड़ा पुण्यात्मा राजा राज्य करता था॥३२॥ उसकी विवाह के योग्य एक सुन्दरी कौशल्या नाम की पुत्री थी। उसका उसके पिता कौसल ने अयोध्या के राजकुमार दशरथ के साथ विवाह निश्चित किया। अति प्रसन्नता एवं आनंद से अतिरेक राजा कौसल ने विवाह के दिन का निश्चय करके उन्होंने लग्न के निमित्त राजा दशरथ को आमंत्रित करने दूत को भेजा तब उस समय राजा दशरथ सरयू नदी के बीच नौका पर बैठकर इष्टमित्रों तथा मन्त्रियों के साथ जलक्रीड़ा कर रहे थे। रात्रि का समय था, चारों ओर सैनिक खड़े थे, चारणगण स्तुति कर रहे थे और रत्नों के दीप के प्रकाश से समस्त नाव जगमगा रही थी। वाराङ्गनायें नाना प्रकार के नृत्य-गान कर रही थीं॥३५॥३६॥

रावण ने इस किसी भी प्रकार राजा दशरथ और कौशल्या के विवाह को रोककर विधि का विधान बदलने का निश्चय कर यह आक्रमण किया था। इधर अयोध्या में राजा दशरथ पर आक्रमण के बाद वह सीधा कौशल देश जा पहुँचा। उस समय आधी रात थी। सभी सैनिक निद्रावस्था में थे। उपयुक्त अवसर पाकर रावण ने सोती हुई कौशल्या को उसके महल से सोते हुए ही अपहरण कर एक संदूक में बंद किया और उन्हें ले जाकर तिमिंगल नामक दैत्य जो रावण का परम मित्र था को सौंप कहा कि इस सन्दूक को किसी समुद्री टापू पर छोड़ आए देखते ताकि कौशल्या भूख-प्यास से मर जाये। तिमिंगल ने उस संदूक को गंगा सागर के द्वीप पर जहाँ कपिल मुनि का आश्रम हुआ करता था वह छोड़ आए। इस प्रसंग के अनुसार राजा दशरथ की नौका पर रावण के द्वारा प्रहार करने पर उनकी नौका सीधे गंगा सागर के उस टापू पर पहुँच गई जहाँ राजकुमारी कौशल्या को रावण का मित्र दैत्य भूखा मरने की नियत से छोड़ गया था, जहा दशरथ जी और कौशल्या का मिलन हुआ। 

एक अन्य प्रसंग के अनुसार राजा दशरथ रावण से युद्ध से बचने के बाद अपनी बारात को जल-मार्ग से कौशल देश की ओर जा रहे थे। उस समय दैवयोग से भारी वर्षा होते लगी। जल की लहरें आकाश को चूमने लगीं। चारों और भयंकर चक्रवात उत्पन्न हो गया। इस तूफ़ान में सभी नावें डूब गईं। राजा दशरथ और उनका मंत्री सुमंत किसी तरह एक टूटी हुई नाव को पकड़कर गंगासागर जा पहुँचे, जहाँ तिमिंगल ने संदूक छिपाया था। द्वीप पर एक विशाल संदूक देखकर राजा दशरथ विस्मित रह गए। उत्सुकतावश जब उन्होंने संदूक खोला तो उसमें से कौशल्या बाहर निकल आई। दोनों में परिचय का आदान-प्रदान हुआ। भावी पति को अपने समक्ष देखकर कौशल्या लज्जा और संकोच से भर उठीं। दशरथ भी एकटक उन्हें देखते रह गए। तदन्तर सुमंत्र के परामर्श से राजा दशरथ राजकुमारी कौशल्या ने विवाह के मुहूर्त में गंधर्व विवाह कर कौशल्या को अयोध्या ले आए और उनसे विधिवत् विवाह कर लिया। इस प्रकार रावण के अनेक रुकावट करने पर भी राजा दशरथ और कौशल्या का विवाह संपन्न हो गया। 

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