मेरे ही कफ़न का साया छिपाया है
काव्य साहित्य | कविता आत्माराम यादव ‘पीव’15 Feb 2024 (अंक: 247, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
ओंठों ने करके दफ़न अपने,
तेरे प्यार को भुलाया है
सताया है रुलाया है मुझे
तेरी यादों ने बुलाया है।
चाहा था दिल में,
हम ग़म की क़ब्र खोदेंगे
दिल का क्या क़ुसूर,
जो इसमें ग़म ही नहीं समाया है।
दिखती है मेरे लबों पर,
तुमको ज़माने भर की हँसी
हँसी में मेरे ही कफ़न का,
मैंने साया छिपाया है।
तुम्हारी ख़ुशी के लिये ही,
ये शौक़ पाले थे मैंने
ये मेरी ही ख़ता थी, जो
तुमने बदनाम करवाया है।
ग़लतियों को अपनी कहाँ
छुपाओगे, तुम यहाँ पर
झुकाकर नज़र गुज़र जाना,
तूने अच्छा सबब अपनाया है।
क़ुसूर आँखों में छिपाकर,
क़ुसूर वालों ने अकड़ना सीख लिया
तब से हर शरीफ़ज़ादा,
गली से चुपचाप निकल आया है।
दिल की बोतल से तेरी, मैंने
पी डाले न जाने कितने कड़वे घूँट
जलजले ज़हर के मैंने,
‘पीव’ की रहमत से पचाया है।
शम्मा ए रोशनी को, कहीं
और जलाओ तुम लोगो
अँधेरों से हमें, कुछ
इस क़द्र प्यार आया है।
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