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कौआ, कब कान्हा के हाथों रोटी छीनेगा

 

जब नन्हे कान्हा के हाथों से
कौआ रोटी लेकर भागा, 
तब रसखान कवि ने
कौवे के भाग की बड़ी सराहना की
तब मेरे बाल सुलभ मन का कान्हा भी
हाथ में रोटी लिये आँगन की और दौड़ा
पर यह क्या? घर की मुन्डेर सहित
घर के नीम और ईमली के पेड़ पर
कोई कौआ नज़र नहीं आया, उल्टे
कुत्ते के पिल्ले रोटी छीन खाने लगे
ऐसा कई बार हुआ मैं सुबह से शाम तक
कौवे के लिये रोटी लेकर आया
और रोटी कुत्तों के पिल्लों ने खायी। 
मैं बालसुलभ मन से निकल
बुद्धिजीवी बन सोचने को विवश हो गया
कि कान्हा के हाथ से रोटी लेकर
प्रतिष्ठित हुए कौवे, आख़िर कहाँ चले गये? 
शायद उन्हें तब नन्हे बच्चों के हाथों
रोटी न मिली हो तो वे बदल गये हों
और उनका स्वभाव मरे हुए जीवों को
या लाश बन चुके जानवरों को नोंचकर
पेट भरने में तब्दील हो गया हो। 
हो सकता है कुछ सफ़ेदपोश लोग
आधुनिक कौवों का स्वभाव अपना लें
ज़्यादा के लालच में कुछ किसान
खेतों की नरवाई जलाकर धरती के
जीवजंतुओं और पेड़ों पर सोते
पशुु पक्षियों को आग के हवाले कर
उनकी मौजूदा नस्लों को मिटा दें। 
आदमी की हवस और धूल-धूसर हो चुके
पर्यावरण से तबाह हो चुके वातावरण
और पृथ्वी की कोख में पल रहे
नाना प्रकार के जीव जंतु, 
केंचुआ, चूहे-साँप सहित, गीत गाती कोयले
कलरव करते पक्षी बेमौत मारे जायें
तब धरती पर कौवे की काँव-काँव
किस कान्हा को सुनाई देगी
कौन कौआ कान्हा के हाथों से रोटी छीनेगा
मिट जायेंगे जब धरा के पोषक तत्त्व
मिट्टी तब ज़िन्दा लाश में तब्दील हो
धरती ही बंजर बन जाएगी, तब कहाँ
पैदा करेंगे अनाज, 
और अनाज नहीं होगा तो
‘पीव’ खाने को रोटी कहाँ से लाओगे? 
कौआ नहीं होगा? रोटी नहीं होगी? 
तो कान्हा हाथ में क्या रहेगा? 
क्या कान्हा कौवे का इंतज़ार फिर कर सकेगा? 
शायद कभी नहीं? शायद कभी नहीं? 

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