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राम से मिलते हैं सुग्रीव हुए भय और संदेहों से मुक्त 

 

सुग्रीव के जीवन में झाँका जाये तो वह एक विषयी जीव रहा है जिसका आत्मविश्वास कभी भी ख़ुद पर नहीं रहा और संदेहों से भरा होने पर वह इतना आतुर रहा जिसमें किसी भी कार्य के परिणाम जाने बिना स्वयं निर्णय लेकर समस्याओ और परिस्थितियों से वह भाग खड़ा होता था। सुग्रीव के मन में परमात्मा के प्रति कोई भक्ति या आकर्षण नहीं था। काम के प्रति उसकी आसक्ति ज़रूर चरम पर रही जिससे उन्हें राम के क्रोध का सामना करना पड़ा। वह बालि का छोटा भाई था पर बालि से चरित्र में बिलकुल भिन्न था। बालि महान वीर योद्धा, दृढ़ निश्चयी और साहसी था। वह कभी भी किसी लड़ाई से पीछे नहीं भागता और हर चुनौती का सामना करता था। बालि ने रावण की चुनौती का सामना कर रावण को 6 माह बंदी बना रखा था जबकि सुग्रीव हर चुनौती से भागता रहा। सुग्रीव के जीवन का इतिहास भागने से भरा है। वह एक भगोड़ा रहा परन्तु यह विचित्र संयोग रहा कि न भागने वाले बालि और हर परिस्थितियों से भागने वाले सुग्रीव—दोनों ने ईश्वर को प्राप्त किया। 

सुग्रीव अपनी कथा भगवान राम को सुनाते हैं कि हम दोनों भाई पहले अच्छे से हिलमिल कर रहते थे परन्तु एक घटना के बाद शत्रु हो गए। सुग्रीव कहता है कि एक रात किष्किंधा के बाहर आकार एक मायावी राक्षस आधी रात को बालि को ललकारता है और बालि उसकी चुनौती सुनकर लड़ने निकल पड़ता है। भाई बालि की हिम्मत को देख सुग्रीव भी जोश मैं पीछे-पीछे चल पड़ता है। मायावी गुफा में चला गया तब बालि ने सुग्रीव से कहा तुम बाहर ही रुको। यह सुग्रीव के मन की बात थी, उन्होंने कहा जो आज्ञा। बालि ने कहा 15 दिन में जीत कर लौट आऊँगा। बालि में आत्मविश्वास और साहस था इसलिए 15 दिन की घोषणा कर कह दिया कि अगर न लौटूँ तो समझ लेना मारा गया। बालि गणित में यहीं असफल रहा और जब उसने मायावी को मारा तो उसके मायावी के ख़ून की धारा बह निकली, तब राम ने पूछा ख़ून की धारा देख तुम्हारे ऊपर क्या प्रभाव हुआ? क्या तुमने नहीं सोचा कि भाई लड़ रहा है भीतर जाऊँ और भाई का साथ देकर मायावी से लड़ूँ। सुग्रीव ने कहा ख़ून कि धारा देखकर मैंने मान लिया कि शायद बालि मारा गया है। अब बालि के बाद वह मुझे भी मार देगा इसलिए भाग चलना चाहिए और मैं गुफा के द्वार को एक शिला से बंद कर लौट आया। 

सुग्रीव विषयी जीव है उसके चरित्र में साहस की कमी है। वह भगवान को देखकर भ्रम करता है कि दो राजकुमार उसे मारने आए है। सुग्रीव ईश्वर को शत्रु के रूप में देखता है इसलिए उसकी दृष्टि एक भ्रमित व्यकित की है। अगर सुग्रीव और विभीषण कि तुलना करें तो विभीषण ने भगवान को साधना करके पाया है जबकि सुग्रीव ने हनुमान जी कि कृपा से पाया है। 

सुग्रीव का संकल्प था कि यदि बालि के भेजे हुए राजकुमार हैं तो इस स्थान को छोड़ कर भाग जाना चाहिए–

“पठए बालि होहिं मन मैला। 
भागो तुरंत तजौ यह सैला॥”

यह पहला ऐसा व्यक्ति है जो ईश्वर को प्राप्त करने जा रहा है, न उसके जीवन में वीरता है, न उसके जीवन में कोई सद्गुण है फिर भी अद्भुत बात हनुमान जी कहते हैं कि–

“नाथ शैल पर कपिपति रहई। 
सो सुग्रीव दास तव अहई॥”

है ने विचित्र बात। सुग्रीव कही के राजा नहीं है। जिसका राज छिन गया हो, पत्नी छिन गई हो, न वे कहीं के राजा थे, न कोई सम्पत्ति थी, न कोई परिवार था लेकिन हनुमान जी ने उनका यही कहकर परिचय दिया कि वे बंदरों के राजा हैं। हनुमान जी राम जी से सुग्रीव का परिचय कराते कहते हैं जैसे राजा आप हैं वैसे ही राजा सुग्रीव हैं। सुग्रीव आपके सेवक हैं इसलिए जितनी सेवा लेना चाहें वे देने को तैयार हैं परन्तु सेवक को सेवक बनाने वाले बहुत हैं, पर सेवक को मित्र बनाने वाले आप जैसे उदार दूजा नहीं है। आप ही हैं जो सेवक को मित्र बनाकर बराबरी का दर्जा देते हैं। हनुमान ने सुग्रीव से प्रभु कि मित्रता कराकर स्वयं प्रभु से उनका सेवक होने का पद पा लिया। 

राम ने सुग्रीव से मित्रता करने के बाद प्रतिज्ञा ली कि वे बालि को मारकर किष्किंधा का राज्य सुग्रीव को सौंप देंगे पर सुग्रीव को राम पर विश्वास नहीं था कि वे बालि को मार पाएँगे। सुग्रीव जीव है और जीव भगवान पर अनायास विश्वास नहीं करते, जब तक जीव परिणाम न देख लें वे अनिर्णय कि स्थिति में होते हैं। सुग्रीव ने भगवान की परीक्षा लेना चाही और राम से कहा ये सात ताल के पेड़ हैं इन्हें एक ही तीर से भेद सको तो समझूँगा आप बालि को मार सकोगे। भगवान चाहते तो सुग्रीव द्वारा उनपर संदेह करने, विश्वास न करने से नाराज़ हो सकते थे पर उन्होंने बुरा नहीं माना और उन पेड़ों को बिना प्रयास के ही ढहा दिया। राम के कहने से सुग्रीव बालि से लड़ने जाता है और पिटकर भाग आता है तब लक्ष्मण उलाहना देते हैं कि प्रभु का मित्र बनने के बाद भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ रहा है और भाग रहा है। राम बालि को मारकर सुग्रीव के भय को दूर करते हैं। 

सुग्रीव से स्वभाव का एक उदाहरण तब देखने को मिलता है जब विभीषण रावण द्वारा तिरिस्कृत हो समुद्र किनारे भगवान पर विश्वास कर उनकी शरण में आते हैं तब सुग्रीव रोकते हैं और जवाब देते हैं कि यह रावण का भेदिया है इसे बाँधकर लाओ। राम ही सुग्रीव से कहते हैं कि तुमने मुझसे नहीं पूछा कि मुझे क्या करना है? सुग्रीव जवाब देते हैं कि आप में खोटे खरे कि परख नहीं है। हनुमान सुनते ही समझ गए कि अगर खोटे-खरे कि परख नहीं होती तो प्रभु सुग्रीव को शरण में लेकर मित्र बनाते क्या? राम सुग्रीव को कहते हैं कि मित्र तुम्हारी आँखें कमज़ोर हो गई हैं, क्योंकि तुमने पहले मुझे देखा था तो बालि का भेजा हुआ भेदिया समझ लिया था, तुम भेदिया बहुत जल्द मान लेते हो। तुमने मेरा भेद जानने हनुमान जी को भेजा था इसलिए विभीषण का भेद जानने उन्हें ही भेजने की ज़रूरत है, आँखें अच्छी हैं। हनुमान जी सुग्रीव कि बात का खंडन होते देख अपनी चतुराई से जवाब देते हैं प्रभु यह प्रश्न ठीक नहीं कि विभीषण खरे हैं या खोटे हैं। वे आपकी शरण में स्वयं चलकर आए हैं इसलिए शरणागत को शरण देना आपका काम है। 
 

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