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अष्ट स्वरूपा लक्ष्मी: एक ज्योतिषीय विवेचना

 

गृहस्थ जीवन और सामाजिक जीवन में माँ लक्ष्मी जी की कृपा की आवश्यकता का महत्त्व सर्वविदित है। माँ के आशीर्वाद के बग़ैर सौभाग्य और सफलता की कल्पना करना भी व्यर्थ है। आदि लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, वीर लक्ष्मी, जय लक्ष्मी और विद्या लक्ष्मी माँ लक्ष्मी के ही अष्ट स्वरूप हैं। इन सभी स्वरूपों की कृपा यदि किसी जातक के जीवन पर हो तो वह अत्यंत ही भाग्यशाली कहलाता है। लेकिन संसार में बहुत कम जातकों का जीवन ही आदर्श जीवन होता है, प्रायः कोई ना कोई कमी अवश्य रह ही जाती है। ग्रहों की स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए, माँ लक्ष्मी के इन अष्ट स्वरूपों की ज्योतिषीय विवेचना भी की जा सकती है। 

पूर्व जन्मों के संस्कारों के आधार पर जातक के जन्म का कुल तथा परिवार का निर्धारण होता है। यदि अच्छे, संस्कारवान कुल या परिवार में जातक को जन्म प्राप्त होता है तो इसे ही माँ आदि लक्ष्मी का आशीर्वाद कहते हैं। अतः दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि पूर्व जन्म में माँ आदि लक्ष्मी की प्रेरणा से ही जातक कुछ ऐसे अच्छे कर्म कर लेता है कि आगामी जीवन में उसे अच्छा कुल और परिवार प्राप्त होता है। चूँकि इस प्रक्रिया में केवल जातक के पूर्व जन्मों के अच्छे या बुरे संचित कर्म ही काम आते हैं, अतः इसमें जातक का कोई बस नहीं चलता। 

माँ अपने धन लक्ष्मी स्वरूप से जातक को धन का आशीर्वाद प्रदान करती है। जन्म पत्रिका का दूसरा भाव धन भाव कहलाता है, जहाँ से जातक को धन का कितना सुख प्राप्त होगा अथवा जातक कितना धन कमा पाएगा इसका निर्धारण होता है। काल पुरुष की कुंडली में इस भाव में वृषभ राशि आती है, जिसके स्वामी शुक्र हैं। अतः यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में शुक्र पीड़ित हो तो जातक को धन का सुख ठीक से प्राप्त नहीं हो पाता, ऐसी स्थिति में जातक को शुक्र के उपाय करने चाहिए तथा स्त्रियों का सम्मान करना चाहिए। महालक्ष्मी की पूजा-आराधना करना अत्यंत शुभ फलदायी होता है। यह एक अत्यंत सामान्य विवेचना है, सही स्थिति की जानकारी के लिए अन्य ग्रहों की स्थिति, दृष्टि, योग इत्यादि देखना अति आवश्यक है। 

माँ धान्य लक्ष्मी अथवा माँ अन्नपूर्णा का आशीर्वाद हमें भोजन तथा स्वास्थ्य का सुख प्रदान करता हैं। कई बार यह भी देखा गया है कि जातक के पास अतुल धन सम्पत्ति होने के बावजूद वह रोग इत्यादि के कारण भोजन तथा स्वास्थ्य का सुख लाभ नहीं कर पाता है। ऐसे में जातक को सूर्य आराधना अवश्य करना चाहिए क्योंकि सूर्य देव हमें स्वास्थ्य लाभ तो प्रदान करते ही हैं साथ ही साथ धान्य की पैदावार के लिए भी अहम् भूमिका का निर्वाह करते हैं। पिता तथा पितृतुल्य व्यक्तियों का सम्मान तथा सहायता भी सूर्यदेव को प्रसन्न करने की दिशा में उचित क़दम होगा। 

माँ गज लक्ष्मी की कृपा से ही जातक को वाहन तथा ऐशो आराम का सुख प्राप्त होता है। जन्म पत्रिका में वाहन तथा ऐशो आराम के सुख को चौथे भाव से देखा जाता है। काल पुरुष की कुंडली में चौथे भाव में कर्क राशि स्थित होती है, जिसके स्वामी चंद्रमा है। वाहन तथा ऐशो आराम के कारक ग्रह शुक्र हैं। अतः यदि जातक को माँ गज लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करना हो तो उसे शुक्र तथा चंद्रमा को प्रसन्न करना होगा। स्त्रियों, माता तथा मातृतुल्य महिलाओं का सम्मान और सेवा, माँ पार्वती की आराधना करना श्रेयस्कर होगा। 

माँ संतान लक्ष्मी की कृपा से ही जातक को प्रतिभावान, संस्कारवान तथा आज्ञाकारी संतान की प्राप्ति होती है। जन्म कुंडली में पाँचवाँ भाव संतान भाव कहलाता है, जिसके कारक बृहस्पति देव हैं। काल पुरुष की कुंडली में इस भाव में सिंह राशि विराजमान होती है, जिसके स्वामी सूर्य देव हैं। अतः यदि जातक अपने जीवन में एक अच्छी संतान के सुख से वंचित रह जाता है तो उसे बृहस्पति तथा सूर्य देव को प्रसन्न करने लिए उनकी आराधना करना हितकारी हो सकता है। गुरुजनों के प्रति सेवा और सम्मान, इस दिशा में उचित क़दम होगा। 

कर्मठता, जिजीविषा तथा धैर्य का आशीर्वाद माँ वीर लक्ष्मी प्रदान करती हैं। शनि ग्रह धैर्य तथा अनुशासन का प्रतीक हैं। कर्मठता तथा जिजीविषा के लिए धैर्य का होना अति आवश्यक है। यदि किसी जातक के जन्म कुंडली में शनि की स्थिति अच्छी होती है तो वह व्यक्ति जुझारू होता है। इसके विपरीत यदि वह छोटी-छोटी बातों में घबरा जाता है तथा धैर्य खो देता है, तो इसका अर्थ यह है कि उसकी जन्म कुंडली में शनि ग्रह की स्थिति ठीक नहीं है। ऐसी स्थिति में जातक को अपने सेवकों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया रखकर शनिदेव का आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। शनिदेव को प्रसन्न करने के उपाय करने से भी स्थिति में कुछ सुधार आ सकता है। 

माँ जय लक्ष्मी हमें प्रतियोगिताओं, कोर्ट केस, युद्ध, रोग इत्यादि में विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद देती है। अर्थात्‌ माँ जय लक्ष्मी जातक को कष्टों का सामना करके उनसे उबरने का आशीर्वाद प्रदान करती है। जन्मपत्रिका का छठवाँ भाव रोग, ऋण और रिपु का भाव होता है, जहाँ पर काल पुरुष की कुंडली में कन्या राशि विराजमान होती है, जिसके स्वामी बुध है तथा इस भाव के कारक मंगल हैं। अतः इस भाव का बल बढ़ाने के लिए जातक को बुध तथा मंगल ग्रह को प्रसन्न करना होता है। बच्चों और छोटे भाई बहनों के प्रति सच्चा स्नेह रखना शुभ फल दे सकता है। विष्णु सहस्त्रनाम का जाप तथा हनुमान जी की आराधना की जा सकती है। 

माँ का अष्टम स्वरूप विद्या लक्ष्मी कहलाता है जो कि सर्वोत्तम स्वरूप है। माँ अपने इस स्वरूप से हमें विद्या का वरदान देती हैं। विद्या से बड़ा और कोई धन नहीं हो सकता क्योंकि यह तो बाँटने से बढ़ता है तथा इसे कोई छीन भी नहीं सकता। विद्या ही वह धन है जो सदैव आपका साथ देती है। कुंडली में विद्या का आशीर्वाद देने वाले ग्रह बृहस्पतिदेव ही हैं। यदि कुंडली में बृहस्पति की स्थिति कमज़ोर हो तो विद्या प्राप्त करने के इच्छुक जातक को बृहस्पति देव के उपाय करना चाहिए। माँ सरस्वती की आराधना तथा अपने गुरुजनों और शिक्षकों की सेवा करना मंगलकारी सिद्ध हो सकता है। यह लेख मैंने गुरुमाँ डॉ। ऋचा शुक्ला के विचारों से प्रेरित होकर लिखा है। अतः उनके चरणों का सादर वंदन करती हूँ। 

अष्ट लक्ष्मी योग की चर्चा किए बिना यह विवेचना अधूरी रहेगी। यदि जन्म पत्रिका में राहु छठवें भाव में हो तथा गुरु केंद्र में स्थित हो अर्थात्‌ लग्न से पहले, चौथे, सातवें या दसवें भाव में हो तो अष्ट लक्ष्मी योग बनता है, जो कि परम सौभाग्य प्रदान करता है। 

माँ लक्ष्मी के अष्ट स्वरूपों की कृपा एकसाथ प्राप्त करना अत्यंत भाग्य की बात होती है और भाग्य हमारे कर्मों से ही निर्धारित होता है। यदि पूर्व जन्मों के हमारे कर्म अच्छे रहे होंगे तो हमें इस जन्म में माँ लक्ष्मी की विभिन्न स्वरूपों की कृपा अवश्य ही प्राप्त होती है। अतः पूजा-आराधना के साथ-साथ निरंतर सन्मार्ग पर चलना ही हमारी सफलता और संतोष की कुंजी है। 

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