दीपावली की धूम
काव्य साहित्य | कविता डॉ. सुकृति घोष1 Nov 2021 (अंक: 192, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
यत्र तत्र सर्वत्र पंक्तिबद्ध दीप हैं,
गहन तमस को चीरती प्रभा किरण समीप है
स्वच्छ महल और भवन स्वच्छ कुटी द्वार है,
चौक पर मंजुल सतरंगी बहार है
इष्ट मित्र परिजनों में स्नेह सिक्त बंध है,
मंद मंद शीत की दस्तक भी संग है
गाँव, शहर, गली गली रम्यता परिदृश्य है,
बधाई शुभकामनाएँ चतुर्दिक श्रव्य हैं
उज्जवल से नव्य रुचिर वस्त्र परिधान हैं,
चारु से मुखड़ों पर पुष्प सी मुस्कान है
आभामय देवालय, अलंकरण अपार है,
आनंद और वैभव संग सुख की भरमार है
अतिथि के स्वागत सत्कार की अभिलाषा है,
भेंट उपहार की भी नन्हों को आशा है
शृंगारित वसुंधरा, नवल वधु स्वरूप है,
उत्सव उत्साह की भी छलकन अनूप है
सद्भाव संग प्रेम के परिवेश में उल्लास है,
चित्त संग वाणी में मधुरता का वास है
असंख्य रूप व्यंजनों से थाल का सम्मान है,
भिन्न भिन्न मिष्ट अन्न शोभायमान है
गगन, धरा, अनिल में आतिशों की धूम है,
रोशनी के पर्व का आल्हाद चहुँ ओर है
अमावस का श्याम तन हर्ष कांतियुक्त है,
प्रमोद का प्रकाश पर्व बैरभाव मुक्त है
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