कान्हा तुझको आना होगा
काव्य साहित्य | कविता डॉ. सुकृति घोष1 Sep 2024 (अंक: 260, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
तमस घनेरा जग में पसरा, कान्हा तुझको आना होगा
कृष्णाओं ने आज पुकारा, कान्हा तुझको आना होगा
तार तार है देह की गरिमा, कान्हा तुझको आना होगा
खोई खोई मन की महिमा, कान्हा तुझको आना होगा
क्षत विक्षत सी आत्माएँ हैं, कान्हा तुझको आना होगा
घायल विह्वल चेतनाएँ हैं, कान्हा तुझको आना होगा
तप्त नैन में रक्त सलिल है, कान्हा तुझको आना होगा
खंड खंड सा दग्ध हृदय है, कान्हा तुझको आना होगा
आशाओं के द्वार अगोचर, कान्हा तुझको आना होगा
वेदनाओं के दृश्य उजागर, कान्हा तुझको आना होगा
वसुधा ने आवाज़ लगाई, कान्हा तुझको आना होगा
मानवता की आज लड़ाई, कान्हा तुझको आना होगा
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