खो जाना है
काव्य साहित्य | कविता डॉ. सुकृति घोष1 Jun 2023 (अंक: 230, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
स्मृतियों के कानन से चुनकर,
पुष्प सुवासित हृदय लगाकर,
दूर कहीं सो जाना है
सखी, मुझको भी खो जाना है
दूर क्षितिज के पार उतरकर,
धरती अंबर की मिलन छाँव में,
दूर कहीं बस जाना है
सखी, मुझको भी खो जाना है
अति विराट रत्नाकर तट पर,
लहर लहर पर झूम झूमकर,
दूर कहीं तर जाना है
सखी, मुझको भी खो जाना है
अरुणोदय की रक्त रश्मियाँ,
मुखमंडल पर आलोकित कर,
दूर कहीं तप जाना है
सखी, मुझको भी खो जाना है
व्याकुलता का परित्याग कर,
अधरों पर संगीत सजाकर, दूर
कहीं छुप जाना है
सखी, मुझको भी खो जाना है
निर्झरिणी के शीतल निर्मल,
कलकल बहते जल के संग संग,
दूर कहीं बह जाना है
सखी, मुझको भी खो जाना है
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