दीपोत्सव
काव्य साहित्य | कविता डॉ. सुकृति घोष1 Nov 2022 (अंक: 216, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
आओ मंगल दीप जलाएँ, ख़ुशियों का त्योहार मनाएँ
आओ आँगन द्वार सजाएँ, तन मन में उल्लास जगाएँ
भले रैन हो घोर अमावस, कण कण में आलोक सजाएँ
मास कार्तिक सुखद ऋतु में, प्रीत प्रभा से जग चमकाएँ
स्वच्छ हृदय से, स्वच्छ निलय में, माँ कमला को हर्षाएँ
शुचिता के इस दिव्य पर्व में, रूप गुणों को ख़ूब सजाएँ
आओ मंगल दीप जलाएँ, ख़ुशियों का त्योहार मनाएँ
आओ आँगन द्वार सजाएँ, तन मन में उल्लास जगाएँ
ज्ञान चेतना बुद्धि दीप से, कलुष तिमिर को दूर भगाएँ
प्रेम दया और करुण दीप से, उत्सव का आनंद बढ़ाएँ
सुख वैभव संतोष दीप से, जगत प्रकाशित करते जाएँ
मधुर बोल के चारु दीप से, शीतल मंजुल द्युति फैलाएँ
आओ मंगल दीप जलाएँ, ख़ुशियों का त्योहार मनाएँ
आओ आँगन द्वार सजाएँ, तन मन में उल्लास जगाएँ
नवल वस्त्र से नवल मोद से, अंतःस्थल को नवल बनाएँ
पकवानों के रुचिर स्वाद से, रिश्तों में नव रस भर लाएँ
आतिशबाज़ी की धूम धाम में, क्रोध लोभ को बिसराएँ
श्रीराम की इस स्वागत वेला का, पर्व धूम से ख़ूब मनाएँ
आओ मंगल दीप जलाएँ, ख़ुशियों का त्योहार मनाएँ
आओ आँगन द्वार सजाएँ, तन मन में उल्लास जगाएँ
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
सांस्कृतिक आलेख
कविता
- अवकाश का अहसास
- आनंद की अनुभूति
- आस का इंद्रधनुष
- आख़िर बीत गई दिवाली
- एक अलौकिक प्रेम कहानी
- क्या अब भी?
- खो जाना है
- गगरी का अंतस
- जगमग
- दीपावली की धूम
- दीपोत्सव
- नम सा मन
- नश्वरता
- नेह कभी मत बिसराना
- पंछी अब तुम कब लौटोगे?
- पथ की उलझन
- प्रियतम
- फाग की तरंग
- मन
- मृगतृष्णा
- राम मेरे अब आने को हैं
- राही
- लम्हें
- वंदनीय शिक्षक
- शब्द शब्द गीत है
- शिक्षक
- साँझ
- सुनो सुनाऊँ एक कहानी
- होलिका दहन
- ज़िंदगी
कहानी
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं