आख़िर बीत गई दिवाली
काव्य साहित्य | कविता डॉ. सुकृति घोष1 Dec 2023 (अंक: 242, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
आख़िर बीत गई दिवाली
रूप, उमंग, उछाह समेटे
झिलमिल दीप क़तार समेटे
नित नवीन शृंगार समेटे
मंजुल वंदनवार समेटे
आख़िर बीत गई दिवाली
मिष्ट अन्न का स्वाद समेटे
आतिशबाज़ी की धूम समेटे
शुभ शुभ की झंकार समेटे
थकन अलस की नींद समेटे
आख़िर बीत गई दिवाली
तेरी मेरी प्रीत समेटे
मोहक मिश्री याद समेटे
दिलों का मंगलहार समेटे
अधरों की मुस्कान समेटे
आख़िर बीत गई दिवाली
सतरंगी अहसास समेटे
चार दिवस अवकाश समेटे
मित्र स्वजन का स्नेह समेटे
अद्भुत आस मयूख समेटे
आख़िर बीत गई दिवाली
अनुपम सा अनुराग समेटे
अचल सुखद वरदान समेटे
नयन दीप आलोक समेटे
फिर आने की बात समेटे
आख़िर बीत गई दिवाली
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
सांस्कृतिक आलेख
- अष्ट स्वरूपा लक्ष्मी: एक ज्योतिषीय विवेचना
- अस्त ग्रहों की आध्यात्मिक विवेचना
- आत्मिक जुड़ाव
- आयु भाव के विभिन्न आयाम
- एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
- कर्म का सिद्धांत और ज्योतिष
- गजकेसरी: एक अनूठा योग
- चंद्रमा और आपका भावनात्मक जुड़ाव
- पंच महापुरुष योग
- बारहवाँ भाव: मोक्ष या भोग
- राहु और केतु की रस्साकशी
- राहु की महादशा: वरदान या अभिशाप
- लक्ष्मीनारायण योग
- वक्री ग्रहों की आध्यात्मिक विवेचना
- विवाह पर ग्रहों का प्रभाव
- व्यक्तित्व विकास की दिशा का निर्धारण
- शनिदेव की दृष्टियों के भेद
- सूर्य-चंद्र युति: एक विश्लेषण
कहानी
कविता
- अवकाश का अहसास
- आनंद की अनुभूति
- आस का इंद्रधनुष
- आख़िर बीत गई दिवाली
- उस सावन सी बात नहीं है
- एक अलौकिक प्रेम कहानी
- कान्हा तुझको आना होगा
- क्या अब भी?
- खो जाना है
- गगरी का अंतस
- जगमग
- दीपावली की धूम
- दीपोत्सव
- नम सा मन
- नश्वरता
- नेह कभी मत बिसराना
- पंछी अब तुम कब लौटोगे?
- पथ की उलझन
- प्रियतम
- फाग की तरंग
- फिर क्यों?
- मन
- मृगतृष्णा
- राम मेरे अब आने को हैं
- राही
- लम्हें
- वंदनीय शिक्षक
- शब्द शब्द गीत है
- शिक्षक
- श्याम जलद तुम कब आओगे?
- संवेदनाएँ
- साँझ
- सुनो सुनाऊँ एक कहानी
- होलिका दहन
- ज़िंदगी
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं