शनिदेव की दृष्टियों के भेद
आलेख | सांस्कृतिक आलेख डॉ. सुकृति घोष1 Feb 2025 (अंक: 270, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
शनिदेव एक राशि में ढाई वर्ष तक गोचर करते हैं और इस प्रकार पूरे भचक्र की परिक्रमा करने में तीस वर्षों का लंबा समय लेते हैं। शनिदेव शनैः शनैः (धीमे-धीमे) ही अपनी यात्रा पूरी करते हैं, इसलिए इनका नाम शनि है। सभी ग्रहों में शनिदेव सबसे ज़्यादा धीमी गति से चलने वाले ग्रह हैं, इसलिए वे गोचर के समय विभिन्न भावों पर सर्वाधिक लंबे समय तक प्रभाव डालते हैं। शनिदेव की तीन दृष्टियाँ होती हैं: तीसरी, सातवीं तथा दसवीं। काल पुरुष की कुंडली में शनिदेव दो बहुत महत्त्वपूर्ण भाव दशम और एकादश भाव के स्वामी हैं। दशम भाव कर्म का भाव है तथा एकादश भाव लाभ अथवा इच्छा पूर्ति का भाव है। अतः यह कहा जा सकता है कि शनिदेव के पास देने की अद्भुत क्षमता है। लेकिन इसके साथ ही शनिदेव दंडाधिकारी अथवा न्यायाधिकारी भी कहे जाते हैं अतः यदि शनिदेव झोली भरने की क्षमता रखते हैं तो छीनने की भी क्षमता रखते हैं और यह सब जातक के अपने कर्मों पर ही निर्भर करता है। शनिदेव हमारे कर्म (तथा करियर), धैर्य, ज़िम्मेदारियाँ इत्यादि के कारक हैं। यदि हमारे कर्म अच्छे हैं तो शनि देव बहुत अच्छे फल प्रदान करते हैं इसके विपरीत यदि हमारे कर्म ख़राब है तो हमें उनके द्वारा बहुत बुरे परिणाम भी प्राप्त हो सकते हैं। ज्योतिषीय सिद्धांतों के अनुसार शनि देव जहाँ बैठते हैं, उस भाव के अच्छे परिणाम देते हैं क्योंकि शनिदेव न्यायाधीश हैं इसलिए वे जिस भाव में स्थित होते हैं उस भाव में अन्याय की सम्भावना बिल्कुल नहीं होती। लेकिन शनिदेव जहाँ दृष्टि डालते हैं, उस भाव के परिणामों को प्रदान करने में देर करते हैं। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि शनिदेव किसी भाव के परिणामों को प्राप्त करवाने में देर करके हमारे धैर्य की परीक्षा लेते हैं। लेकिन यह भी सच है कि परिणामों को प्राप्त करवाने में भले ही देर हो जाए लेकिन परिणाम प्राप्त अवश्य होते हैं, बशर्तें उस भाव पर अन्य क्रूर ग्रहों की दृष्टि न हो। इसलिए केवल शनिदेव की दृष्टि से डरने की आवश्यकता नहीं है। कोई भी भाव अत्यधिक बुरे परिणाम तभी देता है जब उस पर शनि के अतिरिक्त अन्य क्रूर ग्रहों का भी प्रभाव हो।
शनिदेव की तीसरी दृष्टि को तिर्यक दृष्टि भी कहते हैं। पत्रिका में तीसरा भाव पराक्रम भाव कहलाता है। इस भाव से इच्छाशक्ति, साहस तथा पहल इत्यादि देखा जाता है। हर भाव से तीसरा भाव उस भाव से सम्बन्धित पराक्रम को दर्शाता है। शनिदेव की तीसरी दृष्टि भी पराक्रम से ही सम्बन्धित होती है। यह भी माना जाता है कि शनिदेव की तीसरी दृष्टि जहाँ भी पड़ती है, वहाँ पर जातक के पूर्व जन्मों के कुछ कर्म बाक़ी होते हैं। इसलिए शनिदेव की तीसरी दृष्टि जिस भाव पर पड़ती है, उस भाव के परिणामों को प्राप्त करने के लिए जातक को अनेक जद्दोजेहद करना पड़ सकता है अथवा उसे बहुत मेहनत और पराक्रम के बाद ही उस भाव के फल प्राप्त हो पाते हैं। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि जिस भाव पर शनिदेव की तीसरी दृष्टि पड़ती है, उस भाव के परिणामों को प्राप्त करने के लिए जातक को मेहनत के साथ-साथ धैर्य रखते हुए, इच्छाशक्ति के साथ सफलता की प्रतीक्षा करना चाहिए तथा सही दिशा में प्रयास करना चाहिए। ग़लत दिशा में तथा जल्दबाज़ी से किए गए प्रयासों के कारण विपरीत परिणाम भी प्राप्त होने की आशंका रहती है।
शनि की सप्तम दृष्टि जिस भाव पर पड़ती है उस भाव से सम्बन्धित अनेक चुनौतियाँ जातक के समक्ष उपस्थित हो जाती हैं। उस भाव से सम्बन्धित अनेक इच्छाएँ तथा कामनाएँ जातक के हृदय में जाग्रत होती हैं। उस भाव से सम्बन्धित परिणामों को प्राप्त करने के लिए जातक पर एक जुनून सा सवार हो जाता है और जब उन परिणामों को प्राप्त होने में देर लगती है तो जातक कई बार अवसाद से ग्रस्त भी हो सकता है।
काल पुरुष की कुंडली में शनिदेव दशमेश हैं। दशम भाव कर्म का तथा सफलता प्राप्त करने का भाव है। शनिदेव की दसवीं दृष्टि जिस भाव पर पड़ती है, उस भाव को वे बली कर देते हैं तथा अच्छे परिणाम प्रदान करते हैं। हालाँकि उस भाव से सम्बन्धित परिणामों को प्राप्त करने के लिए करने में जातक को देर भले ही लग सकती है परन्तु उस भाव से सम्बन्धित अच्छे परिणाम ही अक्सर प्राप्त होते हुए देखे गए हैं। जातक को उस भाव से सम्बन्धित ऊँचाइयाँ भी प्राप्त हो सकती हैं। चूँकि दशम भाव कर्म का भाव है इसलिए शनिदेव की दशम दृष्टि के परिणाम भी जातक के पूर्व जन्मों के कर्मों के आधार पर ही प्राप्त होते हैं यदि जातक के कर्म अच्छे होते हैं तो उसे अत्यधिक अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।
यदि शनि देव लग्न भाव में स्थित हो तो उनकी तीसरी दृष्टि पराक्रम भाव पर पड़ेगी ऐसी स्थिति में हो सकता है कि छोटे भाई बहनों के प्रति जातक के पूर्व जन्मों के कुछ कर्म शेष हों तथा इसी कारण से जातक को छोटे भाई-बहनों से सुख प्राप्त करने में पराक्रम या पहल करना पड़े। उचित दिशा में किए गए प्रयास से जातक को देर-सबेर छोटे भाई बहनों से सुख प्राप्त हो सकता है। तीसरा भाव किसी भी कार्य के लिए बार-बार किए जाने वाले पराक्रम तथा प्रयास का भी भाव है शनि की दृष्टि इन बार-बार की कोशिशों को कम करने में भी सहायक होती है तथा इसलिए पराक्रम भाव में पड़ने वाली शनि की दृष्टि अच्छी मानी जाती है। शनि की दृष्टि सप्तम भाव पर भी पड़ती है इसलिए विवाह, पार्टनरशिप इत्यादि को लेकर जातक में अनंत कामनाएँ जाग्रत होती हैं। उसे विवाह करने का जुनून सवार हो जाता है। लेकिन शनि की दृष्टि के कारण लाख कोशिशों के बावजूद भी उसके विवाह में देरी अवश्य होती है, जिसके कारण जातक के मन में निराशा या अवसाद का डेरा होने की सम्भावना हो जाती है। ऐसी स्थिति में जातक को विवाह का सुख प्राप्त करने के लिए धैर्य के साथ सही दिशा में प्रयास करना चाहिए। यदि जातक जल्दबाज़ी में ग़लत निर्णय ले लेता है तो वैवाहिक सम्बन्ध उसके लिए एक सज़ा की भाँति हो जाता है। यदि दूसरे अशुभ ग्रहों का प्रभाव न हो तो जातक को देर से ही सही लेकिन विवाह का सुख अवश्य ही प्राप्त होता है। सप्तम भाव मारक भाव भी है इसलिए सप्तम भाव पर शनि की दृष्टि उसके मारक प्रभाव को कम कर देती है। इस प्रकार सप्तम भाव पर शनि की दृष्टि कुछ अच्छे प्रभाव भी देती है। शनि की दसवीं दृष्टि कर्म भाव पर पड़ती है। यदि जातक के कर्म अच्छे हों तो जातक शनैः शनैः समय के साथ अपने करियर की ऊँचाइयों को प्राप्त करने में सक्षम होता है। लेकिन पत्रिका की विवेचना में अन्य ग्रहों की शुभ-अशुभ स्थितियों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए।
यदि शनि दूसरे भाव में स्थित हो उसकी तीसरी दृष्टि चतुर्थ भाव में पड़ेगी, इस कारण जातक को अपने घर, वाहन अथवा अपने माता की स्वास्थ्य-रक्षा के लिए काफ़ी पराक्रम तथा धैर्य के साथ कोशिशें करनी पड़ सकती हैं। इस स्थिति में सातवीं दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ेगी जिसके कारण जातक को पैतृक सम्पत्ति प्राप्त करने में देर लग सकती है। अष्टम भाव पति/पत्नी के धन का भाव है, शनि की सप्तम दृष्टि इसमें भी देरी कर सकती है। लेकिन आठवाँ भाव लंबी बीमारियाँ, अचानक आने वाले बदलाव, बदनामी इत्यादि का भाव भी है शनि की सप्तम दृष्टि इनमें भी कमी करती है तथा आयु में वृद्धि करती है। इस प्रकार इस भाव में शनि की दृष्टि के कुछ अच्छे परिणाम भी प्राप्त होते हैं। इस स्थिति में शनि की दसवीं दृष्टि ग्यारहवें भाव पर पड़ेगी। यह भाव लाभ, इच्छापूर्ति, बड़े भाई-बहन, मित्रगण इत्यादि का भाव है। यदि अन्य अशुभ प्रभाव न हो तो समय के साथ, कुछ देर से जातक को इस भाव से सम्बन्धित अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। लेकिन जल्दबाज़ी में लिए गए ग़लत निर्णय से जातक को सदैव बचना चाहिए। यह सब जातक के पूर्व जन्मों के कर्मफलों पर ही निर्भर करता है।
यदि शनिदेव पत्रिका में तीसरे भाव में स्थित हो तो उनकी तीसरी दृष्टि पंचम भाव पर पड़ेगी, तब जातक को संतान-सुख अथवा अपने प्रेम सम्बन्धों के लिए धैर्य के साथ काफ़ी कोशिशें अथवा पराक्रम करना पड़ सकता है क्योंकि इस भाव से सम्बन्धित पिछले जन्मों के उसके कुछ कर्मों का हिसाब बाक़ी होता है। शनिदेव की सप्तम दृष्टि नवम भाव में पड़ेगी। जातक को अपने पिता अथवा गुरु का स्नेह प्राप्त करने की तथा ज्ञान प्राप्त करने की असीम इच्छा हो सकती है। इस स्थिति में जातक को पिता अथवा गुरु के साथ सम्बन्धों में धैर्य के साथ काफ़ी संतुलन रखकर एहतियात बरतने की आवश्यकता होती है। सेवा भावना से ही जातक को समय के साथ पिता और गुरु का स्नेह तथा ज्ञान प्राप्त हो पाता है। शनि की दसवीं दृष्टि बारहवें भाव पर पड़ती है। बारहवाँ भाव शैया-सुख का, खर्चो का, अस्पताल का भाव है शनि की दृष्टि बारहवें भाव के बुरे प्रभावों को कम कर देती है इस प्रकार बारहवें भाव में शनि की दृष्टि कुछ अच्छे परिणाम भी देती है। यदि जातक के कर्म अच्छे होते हैं तो इस भाव के सुखद परिणाम प्राप्त होते हैं।
शनि चतुर्थ भाव में स्थित हो तो उसकी तीसरी दृष्टि छठवें भाव पर पड़ती है छठवाँ भाव रोग-ऋण-रिपु का भाव है। यह दृष्टि इनमें कमी कर देती है साथ ही ईर्ष्या, जलन अहंकार में भी कमी करती है। इस प्रकार छठवें भाव पर पड़ने वाली शनि की दृष्टि कुछ अच्छे परिणाम भी देती है। हालाँकि नौकरी के लिए जातक को अत्यधिक पराक्रम व प्रयास भी करना पड़ सकता है। सातवीं दृष्टि दशम भाव पर पड़ती है इसलिए जातक को व्यवसाय से सम्बन्धित अनेकानेक इच्छाएँ हो सकती हैं तथा इसमें देरी के कारण जातक में अवसाद की स्थिति भी निर्मित हो सकती है। लेकिन यदि अन्य अशुभ प्रभाव न हों तो धैर्य के साथ किए गए प्रयासों से जातक को कुछ देर से ही सही, सफलता अवश्य मिलती है। जातक को जल्दबाज़ी में लिए गए निर्णय से बचना चाहिए। दसवीं दृष्टि लग्न भाव पर पड़ती है। शनि देव की इस दृष्टि के कारण जातक को स्वास्थ्य सम्बन्धित समस्याएँ झेलनी पड़ सकती है लेकिन जातक की आयु लंबी होती है। धैर्य रखने से जातक को उसके पूर्व जन्मों के कर्म फलों के अनुसार जीवन में सफलता अवश्य प्राप्त होती है।
शनि देव पंचम भाव में स्थित हों तो उनकी तीसरी दृष्टि सप्तम भाव में पड़ेगी। वैवाहिक सुख प्राप्ति के लिए जातक को काफ़ी पराक्रम व कोशिशें करनी पड़ सकती हैं क्योंकि जातक के इस भाव से सम्बन्धित कुछ पूर्व जन्मों के कर्मों का हिसाब बाक़ी होता है। उसके विवाह में देरी भी सम्भव है लेकिन साथ ही शनिदेव की यह दृष्टि सप्तम भाव के मारक प्रभाव को भी कम कर देती है। सप्तम दृष्टि लाभ भाव पर पड़ेगी। अतः जातक में लाभ प्राप्त करने तथा इच्छाओं पूर्ति करने का जुनून सवार हो सकता है। इस स्थिति में जातक को धैर्य पूर्वक उचित दिशा में प्रयास करना चाहिए तथा अवसाद से बचना चाहिए क्योंकि जल्दबाज़ी में लिए गए ग़लत निर्णय से जातक को पछताना भी पड़ सकता है। दसवीं दृष्टि दूसरे भाव पर पड़ेगी। दूसरा भाव धन, वाणी तथा कुटुंब का भाव होता है। यदि अन्य अशुभ प्रभाव न हों तो समय के साथ धीरे-धीरे जातक को धन की प्राप्ति तथा कुटुंब का स्नेह अवश्य प्राप्त होता है लेकिन यह सब जातक के पूर्व जन्मों के कर्मफलों पर ही आधारित होता है। इसके अतिरिक्त शनिदेव की यह दृष्टि दूसरे भाव के मारक प्रभाव को कम करने में भी सहायक होती है।
यदि शनिदेव षष्ठम भाव में स्थित हों तो उनकी तीसरी दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है जो कि अष्टम भाव के ऋणात्मक प्रभावों को कम करने में सहायक होती है। सप्तम दृष्टि बारहवें भाव में पढ़ती है जो बारहवें भाव के ऋणात्मक प्रभाव को कम कर देती है तथा दसवीं दृष्टि पराक्रम भाव में पड़ती है जो पराक्रम भाव के ऋणात्मक प्रभावों को कम करती है। इस प्रकार छठवें पर भाव में शनि की स्थिति सबसे अच्छी मानी जाती है क्योंकि इस स्थिति में जातक के बहुत सारे ऋणात्मक फल कम हो जाते हैं। लेकिन यह तभी सम्भव है जब जातक सही राह पर धैर्य के साथ चलता रहे अन्यथा शनि देव अपनी न्यायाधीश वाली भूमिका अवश्य निभाते हैं।
यदि शनि देव सप्तम भाव में स्थित हो तो उनकी तीसरी दृष्टि नवम भाव में पड़ती है। अतः पिता अथवा गुरु का स्नेह प्राप्त करने के लिए अथवा धर्म के कार्यों को संपादित करने के लिए जातक को काफ़ी पराक्रम अथवा प्रयास करना पड़ सकता है। सप्तम दृष्टि लग्न भाव पर पड़ती है इसलिए जातक के मन में स्वास्थ्य, सुंदरता तथा सफलता से सम्बन्धित अनेक कामनाएँ हो सकती है, जिसमें देरी के कारण जातक को अवसाद की स्थिति से गुज़रना भी पड़ सकता है। धैर्य के साथ सही दिशा में किए गए प्रयासों से समय के साथ जातक को सफलताएँ प्राप्त हो सकती है। जातक को ग़लत निर्णय से सर्वथा बचना चाहिए। दसवीं दृष्टि चतुर्थ भाव पर पड़ती है इसलिए जातक को घर, वाहन तथा माता के सुख की प्राप्ति उसके कर्म फलों के अनुसार देर सवेर ही सही, लेकिन होती अवश्य है। पूर्ण विवेचना के लिए अन्य ग्रहों के शुभ-अशुभ प्रभावों को भी देखना आवश्यक है।
यदि शनि देव अष्टम भाव में स्थित हो तो उनकी तीसरी दृष्टि दशम भाव में पड़ती है अतः जातक को व्यवसाय में सफलता प्राप्ति के लिए अनेक प्रयास व पराक्रम करना पड़ सकता है क्योंकि इस भाव से सम्बन्धित जातक के पूर्व जन्मों के कर्मों का हिसाब बाक़ी होता है। सातवीं दृष्टि दूसरे भाव पर पड़ती है जिसके कारण जातक को कुटुंब से तथा धन से सम्बन्धित अनेक इच्छाएँ हो सकती है, जिनमें होने वाली देरी के कारण जातक निराशा के अँधेरे में भी जा सकता है। ग़लत निर्णय से बचकर, धैर्य के साथ सही दिशा में किए गए प्रयासों से ही इन सुखों की प्राप्ति सम्भव है। इसके अतिरिक्त इस भाव में पढ़ने वाली दृष्टि जातक को दूसरे भाव अर्थात् मारक भाव के ऋणात्मक परिणाम से भी बचाती है। दसवीं दृष्टि पंचम भाव पर पड़ती है अतः जातक को संतान सुख और प्रेम सम्बन्धों में सफलताओं के लिए कुछ समय इंतज़ार करना पड़ सकता है। लेकिन जातक को समय के साथ पूर्व कर्म फलों के अनुसार सफलता प्राप्त हो ही जाती है।
यदि शनि देव नवम भाव में स्थित हो तो उनकी तीसरी दृष्टि लाभ भाव पर पड़ती है। अतः जातक को लाभ, इच्छा पूर्ति अथवा बड़े भाई बहनों का स्नेह प्राप्त करने के लिए अत्यधिक पराक्रम, प्रयास और पहल करने की आवश्यकता होती है क्योंकि इस भाव से सम्बन्धित उसके पूर्व जन्मों के कर्मों का हिसाब बाक़ी होता है। सप्तम दृष्टि पराक्रम भाव पर पड़ती है जिसके कारण पराक्रम भाव के ऋणात्मक परिणामों में कमी हो जाती है। इसी प्रकार दशम दृष्टि षष्ठम भाव पर पड़ती है जिसके कारण षष्ठम भाव के ऋणात्मक परिणामों में भी कमी हो जाती है।
यदि शनि देव दशम भाव में स्थित हो तो उनकी तीसरी दृष्टि द्वादश भाव में पड़ती है। ऐसी स्थिति में द्वादश भाव के ऋणात्मक परिणामों में कमी देखी जा सकती है। सप्तम दृष्टि चतुर्थ भाव में पड़ती है जिसके कारण जातक के मन में अपने घर, वाहन अथवा माता के स्नेह को लेकर अत्यधिक इच्छाएँ अथवा जुनून जाग्रत हो सकता है तथा इनमें देरी होने के कारण जातक अवसाद की स्थिति से भी गुज़र सकता है। जातक को धैर्य के साथ, सही निर्णय लेकर, समय के साथ अपने सपनों के को पूर्ण करने का प्रयास करना चाहिए। दशम दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है जिसके कारण सप्तम भाव के मारक प्रभाव कम हो जाते हैं। लेकिन जातक के विवाह में देरी हो सकती है। यदि अन्य ग्रहों के अशुभ प्रभाव न हों तो देर होने के बावजूद जातक को वैवाहिक सुख अवश्य प्राप्त हो जाता है।
यदि शनिदेव ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो उनकी तीसरी दृष्टि लग्न भाव पर पड़ती है अतः जातक को अपने स्वास्थ्य, सुंदरता, सफलता इत्यादि के लिए अत्यधिक परिश्रम और प्रयास करना पड़ सकता है। सप्तम दृष्टि पंचम भाव पर पड़ती है इस कारण जातक के मन में संतान-सुख तथा प्रेम-सम्बन्धों को लेकर अनंत कामनाएँ और इच्छाएँ जाग्रत हो सकती हैं जिनमें होने वाली देरी के कारण जातक निराशा की स्थिति से गुज़र सकता है। ऐसी स्थिति में जातक को सही निर्णय लेते हुए धैर्य के साथ प्रयास करना चाहिए तथा जल्दबाज़ी से बचना चाहिए तब ही जातक समय के साथ सफलता प्राप्त कर पाता है। दशम दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है जिसके कारण अष्टम भाव के अशुभ प्रभाव कम हो जाते हैं तथा समय के साथ पूर्व जन्मों के कर्म फलानुसार पैतृक सम्पत्ति भी प्राप्त होती है।
यदि शनि देव बारहवें भाव में स्थित हो तो उनकी तीसरी दृष्टि धन भाव पर पड़ती है। ऐसी स्थिति में जातक को धन अथवा कुटुंब का स्नेह प्राप्त करने के लिए काफ़ी प्रयास, पराक्रम व पहल करना पड़ सकता है क्योंकि इस भाव से सम्बन्धित जातक के पूर्व जन्मों का कुछ हिसाब बाक़ी होता है। सप्तम दृष्टि षष्ठम भाव पर पड़ती है जिससे षष्ठम भाव के ऋणात्मक परिणाम कम हो जाते हैं। लेकिन जातक को नौकरी से सम्बन्धित अनेक इच्छाएँ हो सकती हैं, जिनको पूरा करने के लिए जातक को धैर्य के साथ उचित दिशा में प्रयास करना चाहिए। उसी प्रकार दशम दृष्टि नवम भाव पर पड़ती है जिसके कारण जातक को पिता अथवा गुरु का स्नेह प्राप्त करने में कुछ देर हो सकती है लेकिन पूर्व जन्मों के कर्म फल के अनुसार इनकी प्राप्ति समय के साथ हो ही जाती है।
इस प्रकार शनिदेव की दृष्टि सदैव बुरी नहीं होती कुछ दृष्टियाँ बुरे प्रभाव को कम करने का काम भी करती हैं। शनिदेव न्यायाधीश हैं। वह हमारे ही कर्मों का फल हमें प्रदान करते हैं। शनिदेव हमारे धैर्य की परीक्षा लेते हैं। इसलिए यदि हम जल्दबाज़ी छोड़कर अच्छे कर्म करते चलें तथा सही राह पर चलते चलें तो शनिदेव भी हमें इसका पुरस्कार अवश्य देते हैं।
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