सपनों का मर जाना
काव्य साहित्य | कविता आत्माराम यादव ‘पीव’15 Oct 2023 (अंक: 239, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
जब जब दिल का दर्द,
असीम हो जाता है
तब-तब मुर्दा शान्ति सा,
यह शरीर भर जाता है।
ग़ायब हो जाती है तड़प,
ठहर जाते हैं मनोभाव,
मर जाते हैं सपने,
हो जाता है श्मशान सा ठहराव।
रोज़ रोज़ घर से काम पर निकलना,
और लौट कर आना
कितना कष्टप्रद होता है,
दुनिया में सब कुछ सह जाना।
द्वेष हिंसा और वासना है
आदमी के स्वार्थ की कहानी
छल, कपट और बेईमानी है,
धर्म के विनाश की वाणी।
नींद के नहीं, मैं जागते
सपनों को देखता रहा हूँ
समय की हर करवटों में,
सौ-सौ बार मरा और जिया हूँ।
ख़ामोशी से शांत है शरीर,
जीवन का हर पल थम सा गया है
डूब रहा आत्मा का सूरज,
चेतन मन मौत में रम सा गया है।
‘पीव’ कितना ख़तरनाक होता है,
जीवन में सपनों का मर जाना
अपने जिस्म को मुर्दा बनाकर,
उस मुर्दा शान्ति से ख़ुद भर जाना।
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