मुझको हँसना आता नहीं है
काव्य साहित्य | कविता आत्माराम यादव ‘पीव’15 Dec 2023 (अंक: 243, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
मुझको हँसना आता नहीं है
दुःख में बीता सारा बचपन
जीवन मुझको भाता नहीं है।
मुझको हँसना आता नहीं है॥
छिछलेपन पर हँसने में तुम माहिर
भरमाकर काम निकालने में जगज़ाहिर
अपना लूँ तुम-सा व्यवहार भाता नहीं है।
मुझको हँसना आता नहीं है॥
जब भी जीवन में सुख की बूँदें आयीं
तुमने गहरे तक उनको सोख लिया
सुख की राहें बंद हों,
मिथक नया ईजाद किया
पक्के धुनी हो अलमस्त,
ये राग गाना आता नहीं है।
मुझको हँसना आता नहीं है॥
दुःख सहने का आदी हूँ
मैं कमज़ोर नहीं पड़ता हूँ
'पीव' ख़ुशी से दुख को गले लगाकर
मैं हरदम अपने पथ पर आगे बढ़ता हूँ
स्वप्न सँभालो सुनहले अपने,
मुझको जीना आता नहीं है।
मुझको हँसना आता नहीं है॥
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
सांस्कृतिक आलेख
- गिरिजा संग होली खेलत बाघम्बरधारी
- ब्रज की होली में झलकती है लोक संस्कृति की छटा
- भारतीय संस्कृति में मंगल का प्रतीक चिह्न स्वस्तिक
- मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा और विसर्जन का तात्विक अन्वेषण
- राम से मिलते हैं सुग्रीव हुए भय और संदेहों से मुक्त
- रामचरित मानस में स्वास्थ्य की अवधारणा
- रावण ने किया कौशल्या हरण, पश्चात दशरथ कौशल्या विवाह
- शिव भस्म धारण से मिलता है कल्याण
- स्वेच्छाचारिणी मायावी सूर्पणखा की जीवन मीमांसा
कविता
- अधूरी तमन्ना
- अरी आत्मा तू जाये कहाँ रे
- आज का कवि
- एक टीस अंतरमन में
- एक टीस उठी है . . .
- कितना ओछा है आदमी
- कौआ, कब कान्हा के हाथों रोटी छीनेगा
- क्षितिज के पार
- जाने क्यों मुझे देवता बनाते हैं?
- नयनों से बात
- नर्मदा मैय्या तू होले होले बहना
- निजत्व की ओर
- मातृ ऋण
- मुझको हँसना आता नहीं है
- मुझे अपने में समेट लो
- मेरे ही कफ़न का साया छिपाया है
- मैं एक और जनम चाहता हूँ
- मैं गीत नया गाता हूँ
- ये कैसा इलाज था माँ
- वह जब ईश्वर से रूठ जाती है
- सपनों का मर जाना
- सबसे अनूठी माँ
- समय तू चलता चल
- सुख की चाह में
- हे वीणापाणि आज इतना तो कीजिये
- होशंगशाह क़िले की व्यथा
साहित्यिक आलेख
आत्मकथा
चिन्तन
यात्रा वृत्तांत
हास्य-व्यंग्य कविता
ऐतिहासिक
सामाजिक आलेख
सांस्कृतिक कथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं