मातृ ऋण
काव्य साहित्य | कविता आत्माराम यादव ‘पीव’15 Feb 2024 (अंक: 247, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
जगत में मानव जीवन को
तीन ऋण आजीवन मुक्त नहीं कर सकते
प्रथम पितृ ऋण है
जो विश्व दर्शन का कारण होता है
जिसे पत्नी शिशु के रूप में
पति से आत्मसात कर
गर्भधारण करती है!
द्वितीय मातृऋण है
जिसे माँ पेट की उर्वरा भूमि पर
शिशु बीज को अपने रक्त मज्जा से सींच
नौ माह गर्भ में पोषित करती है
और अभेद्य सुरक्षित लोक से
धरा लोक पर शिशु को जनती है
तृतीय गुरु ऋण है
जो शिशु को जगत की व्यावहारिकता
जीविकोपार्जन एवं आदर्श के मार्ग पर
चलने का मार्ग प्रशस्त करता है
मातृऋण होता है
त्याग तपस्या और ममता का
जगत में जिसका कोई सानी नहीं होता
मातृऋण मूलधन है
जिसमें रक्त, मांस, मज्जा
ममता और प्यार मिला होता है
पोषण में लगी कई रातों की नींद
स्तन कलश का अमृतमय पयोधि
सवोत्कृष्ट शिखर का पीव
मातृऋण बनता है शिशु के लिये
आजीवन माँ के अनुग्रह
और माँ की सेवा करने के लिये!!
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