जन्मस्थान : दाउदपुर, सारण, बिहार
भाषाएँ : हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में समान अधिकार।
आत्म कथ्य : जीवन में बहुत सारी घटनाएँ ऐसी घटती हैं जो मेरे हृदय को आंदोलित करती हैं। फिर चाहे ये प्रेम हो, क्रोध हो, क्लेश हो, ईर्ष्या हो, आनन्द हो, दुःख हो, सुख हो, विश्वास हो, भय हो, शंका हो, प्रसंशा हो इत्यादि। ये सारी घटनाएँ यदा कदा मुझे आंतरिक रूप से उद्वेलित करती हैं। मैं बहिर्मुखी स्वाभाव का हूँ और ज़्यादातर मौक़ों पर अपने भावों का संप्रेषण कर ही देता हूँ। फिर भी बहुत सारे मुद्दे या मौक़े ऐसे होते हैं जहाँ भावों का संप्रेषण नहीं होता या यूँ कहें कि हो नहीं पाता। यहाँ पे मेरी लेखनी मेरा साथ निभाती है और मेरे हृदय की बेचैनी को ज़माने तक लाने में सेतु का कार्य करती है।
हृदय रुष्ट है कोलाहल में,
जीवन के इस हलाहल ने,
जाने कितने चेहरे गढ़े,
दिखना मुश्किल वो होता हूँ।
हौले कविता मैं गढ़ता हूँ।
जिस पथ का राही था मैं तो,
प्यास रही थी जिसकी मुझको,
निज सत्य का उद्घाटन करना,
मुश्किल होता मैं खोता हूँ।
हौले कविता मैं गढ़ता हूँ।
प्रकाशन : अनगिनत क़ानूनी संबंधी लेख क़ानूनी पत्रिकाओं में प्रकाशित। वकालत करने के अलावा साहित्य में रुचि रही है।
अनगिनत पत्र, पत्रिकाओं में प्रकाशन। रचनाकार, हिंदी लेखक, स्टोरी मिरर, मातृ भारती, प्रतिलिपि, नव भारत टाइम्स, दैनिक जागरण, सपीकिंग ट्री, आज, हिंदुस्तान, नूतन पथ, अमर उजाला इत्यादि पत्रिका और अख़बारों में रचनाओं का प्रकाशन।
संप्रति : अधिवक्ता: हाई कोर्ट ऑफ़ दिल्ली
दिल्ली हाई कोर्ट में पिछले एक दशक से ज़्यादा समय से बौद्धिक संपदा विषयक क्षेत्र में वकालत जारी।
सम्पर्क : ajayamitabh7@gmail.com
लेखक की कृतियाँ
कविता
- आख़िर कब तक आओगे?
- ईक्षण
- एकलव्य
- किरदार
- कैसे कोई जान रहा?
- क्या हूँ मैं?
- क्यों नर ऐसे होते हैं?
- चाणक्य जभी पूजित होंगे
- चिंगारी से जला नहीं जो
- चीर हरण
- जग में है संन्यास वहीं
- जुगनू जुगनू मिला मिलाकर बरगद पे चमकाता कौन
- देख अब सरकार में
- पौधों में रख आता कौन?
- बेईमानों के नमक का, क़र्ज़ा बहुत था भारी
- मन इच्छुक होता वनवासी
- मरघट वासी
- मानव स्वभाव
- मार्ग एक ही सही नहीं है
- मुझको हिंदुस्तान दिखता है
- मृत शेष
- रावण रण में फिर क्या होगा
- राष्ट्र का नेता कैसा हो?
- राह प्रभु की
- लकड़बग्घे
- शांति की आवाज़
- शोहरत की दौड़ में
- संबोधि के क्षण
- हौले कविता मैं गढ़ता हूँ
- क़लमकार को दुर्योधन में पाप नज़र ही आयेंगे
- फ़ुटपाथ पर रहने वाला
कहानी
सांस्कृतिक कथा
सामाजिक आलेख
सांस्कृतिक आलेख
हास्य-व्यंग्य कविता
नज़्म
किशोर साहित्य कहानी
कथा साहित्य
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं