क़रार
शायरी | नज़्म अजय अमिताभ 'सुमन'15 Apr 2021 (अंक: 179, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
बिखर रहा है कोई तो देख लो ठीक से,
यही तो वक़्त चोट दो औज़ार के साथ।
वक़्त का क्या मौक़ा ये आए न आए,
कि ढह चला है क़िला दरार के साथ।
छोटी सी है बारीक़ियाँ जो सीख लो ठीक,
झूठ ही फैलाना सत्याचार के साथ।
औक़ात पे नज़र हो जज़्बात बेअसर हो,
शतरंजी चाल बाज़ियाँ क़रार के साथ।
दास्ताने क़ुसूर भी बता के क्या मिलेगा,
गुनाह छिप हैं जातें अख़बार के साथ।
नसीहत-ए-बाज़ार में आँसू बेज़ार हैं,
दाम हर दुआ का बीमार के साथ।
चुप सी ही हैं होती ये चीख़ती ख़ामोशियाँ,
यही शोर का सलीक़ा कारोबार के साथ।
ईमान के भी मशवरें हैं लेते हज़्ज़ाल से,
मजबूरियाँ भी कैसी लाचार के साथ।
दाग़ जो हैं पैसे से होते बेदाग़ आज,
बिक रही है आबरू चीत्कार के साथ।
सच्ची ज़ुबाँ की भी बोल क्या मोल क्या?
गिरवी न चाहे क्या क्या उधार के साथ।
आन में भी क्या है कि शान में भी क्या है,
ना जीत से है मतलब ना हार के साथ।
फ़ायदा नुक़सान की ही बात जानता है,
यही क़ायदा क़ानून है क़रार के साथ।
सीख लो बारीक़ियाँ, ये क़ायदा, ये फ़ायदा,
हँसकर भी क्या मिलेगा व्यापार के साथ।
बाज़ार में खड़े हो ज़मीर रख के आना,
खोटे है सिक्के सारे बाज़ार के साथ।
नफ़े की ख़ुमारी में जो तुम मदहोश हो,
कि छू रहो हो आसमां व्यापार के साथ।
काजल की कोठरी में सफ़ेदी चाहते हो,
सोचो न क्या मिलेगा ख़रीदार के साथ।
काटते तो इससे कट जाओगे भी एक दिन,
कि धार बड़ी तेज़ इस हथियार से साथ।
मक्कार ये बाज़ार ये ना माँ का ना बाप का,
डूबोगे तब हँसेगा धिक्कार के साथ।
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