मुझको हिंदुस्तान दिखता है
काव्य साहित्य | कविता अजय अमिताभ 'सुमन'15 Jan 2021 (अंक: 173, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
ना दिल्ली कभी, ना राजस्थान दिखता है,
मैं अंधा हूँ मुझको पूरा हिन्दुतान दिखता है।
तेरी नज़रों की कारीगरी ये हिंदू वो मुसलमान,
मैं अनाड़ी ही सही सब में इंसान दिखता है।
इस नफ़रतों की दौड़ ने काफ़िर बना दिया,
वगरना तो पत्थरों में भगवान दिखता है।
भूख की ख़ातिर ही गिरवी रखा ज़मीर को,
उसकी मजबूरी में भी ईमान दिखता है।
सज़ा तो मैं भी देता उस क़ातिल को यक़ीनन,
मुश्किल कि उसमें ख़ुद का शैतान दिखता है।
जन्नत की सारी दौलतें ये शोहरतें किस काम की,
"अमिताभ" ख़ुद से ही पूरा अनजान दिखता है।
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