मरघट वासी
काव्य साहित्य | कविता अजय अमिताभ 'सुमन'1 Mar 2023 (अंक: 224, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
ओ मरघट के मूल निवासी,
भोले भाले शिव कैलाशी।
यदा कदा मन आकुल व्याकुल,
जग जाता अंतर संन्यासी।
जब जग बन्धन जुड़ जाते हैं,
भाव सागर को मुड़ जाते हैं।
इस भव में यम के जब दर्शन,
मन इच्छुक होता वनवासी।
मन ईक्षण है चाह तुम्हारी,
चेतन प्यासा छाँह तुम्हारी।
इधर उधर प्यासा बन फिरता,
कभी मथुरा कभी काशी।
ओ मरघट के मूल निवासी,
भोले भाले शिव कैलाशी।
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