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मर्ज़ी अपनी अपनी 

 

कुछ दिनों पहले की बात है, बाक़ी अन्य दिनों की तरह मैं दिल्ली हाई कोर्ट गया हुआ था। केस ख़त्म हो जाने के बाद चाय पीने के लिए कैंटीन चला गया। वहाँ पर कुछ लॉ इनटर्न आये हुए थे, जिनमें कुछ लड़के और कुछ लड़कियाँ थी। लॉ इनटर्न दरअसल लॉ के वो स्टुडेंट होते है जो क़ानून की ट्रेनिंग लेने के लिए हाई कोर्ट में आते हैं। आप इन्हें लॉ ट्रेनी भी कह सकते हैं। नई जेनरेशन के बच्चे थे, ज़ाहिर सी बात है, धड़ल्ले से बेख़ौफ़ होकर बातें कर रहे थे। लड़के और लड़कियाँ दोनों सिगरेट के गोल गोल गुलछर्रे बना के उड़ा रहे थे। सिगरेट के गोल-गोल गुलछर्रे बनाने में प्रतिस्पर्धा भी कर रहे थे। 

मैं दुकानदार के पास पैसे देने गया। दुकानदार मेरी जान-पहचान का था। उसने बड़ी हिक़ारत भरी नज़रों से लड़कियों की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, “पता नहीं किस ख़ानदान की लड़कियाँ हैं ये? पता नहीं इनके माँ बाप क्या सिखाते हैं? इस तरह सिगरेट पीना कौन से अच्छे घर की बात हो सकती है भला?” मैं चुपचाप पैसे देकर हट गया। लड़के और लड़कियाँ अभी भी बड़ी बेफ़िक्री से सिगरेट के गोल-गोल गुलछर्रे बना कर उड़ाने में व्यस्त थे। 

इन दोनों घटनाओं ने मुझे कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। ये दोनों घटनाएँ हमारे समाज की मानसिकता को दृष्टिगोचरित करती है। लड़के और लड़कियाँ दोनों ही सिगरेट पी रहे थे, पर दुकानदार की उँगली सिर्फ़ लड़कियों पर ही उठी। टी शर्ट और हाफ़ पैंट में तो मैं भी गया था सब्ज़ी लेने पर महिला को टी शर्ट और हाफ़ पैंट वाली लड़की ही दिखाई पड़ी। अजीब पैमाना है समाज का। 

लड़का सिगरेट पिए तो कोई बात नहीं, यदि लड़की पिये तो पूरा ख़ानदान ही ख़राब। यदि मर्द टी शर्ट और हाफ़ पैंट में घुमें तो कोई बात नहीं, लेकिन यदि कोई स्त्री या लड़की टी शर्ट और हाफ़ पैंट में घुमें तो इसके माँ बाप के पास पैसे ही नहीं हैं। हद तो इस बात की है कि स्त्रियाँ ख़ुद भी इसी मानसिकता का शिकार हैं। इन्हें भी सिगरेट पीने वाली लड़कियों पर ही आपत्ति है, लड़कों पर नहीं। इन्हें भी टी शर्ट और हाफ़ पैंट में घूमने वाली लड़कियाँ ही आपत्तिजनक दिखती हैं, लड़के नहीं। अजीब दोहरी मानसिकता है इन सबकी। 

हालाँकि सिगरेट पीने को मैं कहीं से भी उचित नहीं मानता। ये सभी जानते हैं कि धूम्रपान सेहत के लिए ख़तरनाक है। सिगरेट, खैनी या गुटका खाने से लीवर, हार्ट, और फेफड़ों पे ख़राब असर पड़ता है। धूम्रपान का बढ़ावा देने का मतलब मौत को बुलाना है। मेरी राय में तो धूम्रपान को वैधानिक रूप से निषेध ही कर देना चाहिए। मैं किसी तरीक़े के धूम्रपान का समर्थन नहीं करता। पर यहाँ पर मुद्दा धूम्रपान का सेवन करना नहीं है। 

मुद्दा तो समाज के दोहरे मापदंड का है। यदि कोई लड़का बड़े मज़े में बिना किसी रोक-टोक के सिगरेट पी सकता है, तो फिर लड़कियाँ क्यों नहीं? बात यहाँ पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आज़ादी की है। यदि लड़के धूम्रपान करने के लिए स्वतंत्र है तो लड़कियों को भी वो ही अधिकार मिलना चाहिए। यदि सिगरेट पीने वाले लड़कों को हिक़ारत की नज़र से नहीं देखा जाता तो लड़कियों को भी नहीं देखा जाना चाहिए। लड़के भी धूम्रपान के दुष्परिणामों को झेल लेते हैं तो लड़कियाँ भी झेले लेंगी। किन्तु मात्र धूम्रपान के कारण लड़कियों के ख़ानदान का आकलन करना कहाँ तक उचित है? 

यही बात हाफ़ पैंट और टी शर्ट में घूमने की बात पे भी लागू होती है। गर्मी तो स्त्री या पुरुष में कोई भेद भाव नहीं करती। यदि गर्मी पुरुषों को लगती है तो लड़कियों को भी तो लगती होगी। यदि पुरुषों को हाफ़ पैंट और टी शर्ट में घूमने की आज़ादी है तो ये आज़ादी लड़कियों को मिलनी चाहिए। केवल इस बात से किसी लड़की को ग़लत नज़र से क्यों देखा जाता है कि वो हाफ़ पैंट और टी शर्ट में घूम रही है? यदि कम वस्त्र में घूमने का अधिकार पुरुषों को प्राप्त है तो यही अधिकार महिलाओं को क्यों नहीं प्राप्त है? महिलाओं को हाफ़ पैंट और टी शर्ट में घूमने के कारण हिक़ारत की नज़र से क्यों देखा जाता है? फिर भारतीय संविधान में किस तरह के बराबरी का प्रावधान किया गया है? बराबरी का अधिकार केवल बात करने के लिए तो नहीं है? 

भारत में तो गर्मी का मौसम एक कारण है जिस कारण लड़कियों के लिए हाफ़ पैंट और टी शर्ट में घूमने की बात को तार्किक रूप से प्रस्तुत किया जा सकता है। पर बाहर के देशों में तो बिना किसी कारण के ही ये आज़ादी महिलाओं और स्त्रियों को प्राप्त है। हमें ये देखना चाहिए कि किस तरह के वातावरण में बाहर के देशों में लड़कियाँ और महिलाएँ जी रही हैं? 

मैं कुछ वर्ष पहले बर्लिन और वाशिंगटन गया हुआ था। जर्मनी और अमेरिका में तो काफ़ी ठंड थी, फिर भी महिलाएँ और स्त्रियाँ हाफ़ पैंट और टी शर्ट में बड़े आराम से घूम रहीं थीं। कोई रोक-टोक करने वाला नहीं। सिगरेट पीने वाली महिलाओं और स्त्रियों को कोई घूरने वाला नहीं। शायद स्त्रियों के इसी निर्भीकता और स्वतंत्रता के कारण जर्मनी और अमेरिका इतने विकसित हो पाए हैं। हालाँकि मैं सिगरेट पीने वाली स्त्रियों और महिलाओं का समर्थन नहीं करता। तो दूसरी तरफ़ इस कारण से मैं उनकी निंदा भी नहीं करता। उनका जीवन है, उनकी चॉइस है, उनके परिणाम वो भुगतें। पर समाज कौन होता है उनको बुरी नज़र से देखने के लिए? 

आख़िर हम इस तरह के निर्भीक समाज की स्थापना हम भारत में क्यों नहीं कर पा रहे हैं? यहाँ पे कोई लड़की यदि अपने बॉय फ़्रेंड के साथ रात को घूमती है तो उसके साथ निर्भया जैसी घटना क्यों घट जाती है? कम वस्त्र में कपड़े पहनने का अर्थ यौन सम्बन्ध का निमंत्रण क्यों मान लिया जाता है हमारे समाज में? रात को लड़का अपनी गर्ल फ़्रेंड के साथ घूमें तो किसी की नज़र नहीं जाती पर यदि लड़की घूमें तो कुलटा। बात स्त्रियों और औरतों पर समाज द्वारा लगाई गई अनगिनत पाबंदियों की है। इस तरह डर के माहौल में स्त्रियाँ मज़बूत कैसे रह पाएँगी? सबकी अपनी मर्ज़ी है, सबका अपना नज़रिया है और सबकी मर्ज़ी का सम्मान तो होना ही चाहिए। 

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