आख़िर कब तक आओगे?
काव्य साहित्य | कविता अजय अमिताभ 'सुमन'1 Jan 2023 (अंक: 220, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
पांचाली का वस्त्र हरण हो,
अभिमन्यु के जैसा रण हो,
चक्रव्यूह कुचक्र रचा कर,
एक रथी का पुनः मरण हो,
क्या कहके अब तुझे बुलाएँ,
किस भाँति तुझ पर पतियाएँ?
वाणी में यथार्थ नहीं क्या,
जो किंचित ऐसा फल पाएँ?
जिस धर्म की बात बता कर,
न्याय हेतु विध्वंस रचा कर,
दिए कल्प का जो अभियंत्रण,
वो ही कल्प दे रहा निमंत्रण,
हे कृष्ण हे पार्थ सारथी,
सकल विश्व के परमारथी,
आर्त हृदय से धरा पुकारे,
दिग दिगंत हैं व्याप्त स्वार्थी,
धर्म पुण्य का जब क्षय होगा,
और अधर्म का जब जय होगा,
तुम कहते थे तुम आओगे,
पाप कर्म क्षय कर जाओगे,
तो आओ वो समय फला है,
दुःशासन से आर्त्त धरा है,
आख़िर कब तक आओगे?
जो बात कही कर पाओगे?
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