कैसे कोई जान रहा?
काव्य साहित्य | कविता अजय अमिताभ 'सुमन'15 Dec 2023 (अंक: 243, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
मैं तो हिम में पड़ा हुआ,
हिमसागर घन में जलता हूँ,
ये बिना निमंत्रण स्वर कैसा,
ध्वनि कौन सी सुनता हूँ?
हिम शेष ही बचा हुआ है,
अंदर भी और बाहर भी,
ना विशेष है बचा हुआ,
कोई तथ्य नया उजागर भी।
इतने लंबे जीवन में जो,
कुछ देखा वो कहता था,
ना कोई है सत्य प्रकाशन,
जग सीखा ही कहता था।
बात बड़ी है नई नई जो,
कुछ देखा ख़ुद को बोला,
ना कोई दृष्टिगोचित फिर,
राज़ यहाँ किसने खोला।
ये मेरे मन की सारी बातें,
कैसे कोई जान रहा?
मन मेरे में क्या चलता है,
कोई कैसे है पहचान रहा?
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