मृत शेष
काव्य साहित्य | कविता अजय अमिताभ 'सुमन'1 Feb 2024 (अंक: 246, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
विकट विघ्न जब भी आता,
या तो भय छा जाता है,
या जो सुप्त रहा मानव में,
ओज प्रबल आ जाता है।
या तो भय से तप्त धूमिल,
होने लगते मानव के स्वर,
या तो थर्र-थर्र कम्पित होने,
लगते हैं अरिदल के नर।
या मर जाये या मारे चित्त में,
कर के ये दृढ़ निश्चय,
शत्रु शिविर को चलता योद्धा,
हार फले कि या हो जय।
याद रहे कि अरिसिंधु में,
जो मृत होकर शेष रहा,
वो नर ही विशेष रहा हाँ,
वो नर ही विशेष रहा।
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