अख़बार-ए-ख़ास
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता अजय अमिताभ 'सुमन'15 Oct 2019
वाह भैया क्या बात हो गए,
अख़बार-ए-सरताज हो गए।
कल तक लाला फूलचंद थे,
आज हातिम के बाप हो गए।
भिखमंगे पहले आते थे,
लाला के मन ना भाते थे,
मैले कुचले थे जो बच्चे,
लाला को ना लगते अच्छे।
चौराहे पे कूड़ा पड़ा था,
लाला को ना फ़िक्र पड़ा था,
लाला नाक दबाके चलता,
कचड़े से बच बच कर रहता।
पर चुनाव के दिन जब आते,
लाला को कचड़े मन भाते,
ले कुदाल हाथों में झाड़ू,
जर्नलिस्ट को करता हालू।
फ़ोटो खूब खिंचाता है,
लाला सबपे छा जाता है,
कि जनपार्टी के ख़ास हो गए,
वाह भैया क्या बात हो गए।
अख़बार-ए-सरताज हो गए,
कल तक लाला फूलचंद थे,
आज हातिम के बाप हो गए,
वाह भैया क्या बात हो गए।
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