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चीर हरण

 

छल में कपटी अर्जुन का भी ऐसा कम है नाम नहीं। 
गुरु द्रोण का कृपा पात्र बनना था उसका काम वही। 
मन में उसके क्या था उसके ये दुर्योधन तो जाने ना, 
पर इतना भी मूर्ख नहीं चित्त के अंतर पहचाने ना। 
 
हे मित्र कहो ये न्याय कहाँ उस अर्जुन के कारण ही, 
एकलव्य अँगूठा बलि चढ़ा ना कोई अकारण ही। 
सोचो गुरुवर ने पाप किया क्यों ख़ुद को बदनाम किया, 
जो सूरज जैसा उज्ज्वल हो फिर क्यों ऐसा अंजाम लिया? 
 
ये अर्जुन का था किया धरा उसके मन में था जो संशय, 
गुरु ने ख़ुद पे लिया दाग़ ताकि अर्जुन चित्त रहे अभय। 
फिर निज महल में बुला-बुला अंधे का बेटा कहती थी, 
जो क्रोध अगन में जला बढ़ा उसपे घी वर्षा करती थी। 
 
मैं चिर अग्नि में जला बढ़ा क्या श्यामा को ज्ञान नहीं, 
छोड़ो ऐसे भी कोई भाभी करती क्या अपमान कहीं? 
श्यामा का जो चीर हरण था वो कारण जग ज़ाहिर है, 
मृदु हास्य का खेल नहीं अपमान फलित डग बाहिर है। 

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